Saturday, April 15, 2017

दोस्ती

एक बुरे दौर में
मैंने दोस्तों की तरफ
मदद की उम्मीद भरी निगाह से देखा
कभी ये मदद आर्थिक थी
तो कभी मानसिक
कुछ दोस्तों को मेरी उम्मीद नही दिखी
बस केवल मैं दिखा
मजबूरी की एक कमजोर
प्रस्तुति थी शायद मेरे पास
कुछ दिन ऐसे दोस्तो से मैं रहा बेहद नाराज़
फिर मैंने पाया
मेरी नाराज़गी कोरी भावुकता से भरी थी
जो लगने लगी अप्रासंगिक
कुछ महीनों बाद
दरअसल
बुरे वक्त में दोस्त की मदद न कर पाना
जरूरी नही दोस्त की काहिली हो
कई बार हमारी पात्रता होती है कमजोर
और मदद हो जाती है किसी
लौकिक जटिलता की शिकार

कई बार एक बुरे दौर में
मैने दोस्तो की तरफ
मदद की भरी निगाह से देखा
और दोस्तों ने
मदद की मेरी उम्मीद से बढ़कर
पढ़ लिया मेरा मन
कई कई साल जिक्र तक नही किया
उधार के पैसों का
जो उनके गाढ़े खून पसीने की कमाई थी
शराब के बाद की मेरी 'झक' को
झेला पूरी विनम्रता के साथ
सार्वजनिक रूप से बताते रहें वो
मुझे बेहद प्रतिभाशाली
ऐसे दोस्तो के प्रति
मैने कोई कृतज्ञता प्रकट नही की आजतक
हमेशा लिया इसे एक हक की तरह

ये दो अलग अनुभव नही दरअसल
ये दोस्ती की दो आंखें हैं

इसलिए
नही लिया जाना चाहिए
दोस्तों की बातों को बहुत व्यक्तिगत
बचाए जाने चाहिए रिश्तें
नाराजगियों के बावजूद
दोस्त दरअसल हमारे दोस्त के अलावा
अलग अलग मोर्चो पर लड़ते मनुष्य भी है
जो कहीं जीतते है तो
कहीं हार जाते है

दोस्ती के हिस्से में हमेशा जीत नही होती
मगर दोस्ती के साथ कोई हार
कभी स्थाई भी नही होती

दोस्ती को बचाना
ज़िन्दगी में हार को स्थगित करना है
इस स्थगन के लिए अपेक्षा की हत्या
करनी अनिवार्य पड़े तो
कर देनी चाहें यकीनन
चाहें दिल मानें या न मानें।

©डॉ. अजित

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुन्दर।

'एकलव्य' said...

दोस्ती की सुन्दर व सार्थक परिभाषा। आभार