Wednesday, August 16, 2017

शुभकमनाएं

लगातार विजय के कारण
मैं अब  थकने लगा हूँ
अब मैं हारना चाहता हूँ

सहमत लोगो से मैं
उकता गया हूँ
मुझे  स्थायी तौर पर
कुछ असहमत दोस्त चाहिए
जो बता सके मेरे गलती
मेरी आँखों में आँखें डालकर

मैं कुछ दिन भीड़ की बीच रहना चाहता हूँ
जहां कुछ इस तरह का एकांत हो कि
कोई किसी को न जानता हो आपस में

मैं मरने से पहले
जीने का पता चाहता हूँ
ताकि उसके गले मिलकर
कह सकूं धन्यवाद

अब मैं दुखों पर कोई निजी बात
नही करना चाहता हूँ
अब मैं बस इतना चाहता हूँ कि
मैं क्या चाहता हूँ
ये किसी को बताना या समझाना न पड़े

ये थोड़ी मासूम सी चाहत है
इसलिए मैं इसे रखने के लिए
वो दिल तलाश रहा हूँ
जो न भरा हो और ना खाली ही हो
हो सके तो
वापसी की उम्मीद के बिना
फ़िलहाल
सच्ची शुभकमनाएं दीजिए मुझे.

© डॉ. अजित


3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

शुभकामनाएं कर लीजिये । कुछ अलग है आपका अन्दाजे बयाँ । शुभकामनाएं।

'एकलव्य' said...

सुन्दर भावनाओं से ओत -प्रोत ,हृदय की बात धीमे से कहती आपकी रचना हृदय को स्पर्श करती हुई। आभार ,"एकलव्य"

pushpendra dwivedi said...

waah ati sundar