Wednesday, April 18, 2018

एकदिन


एकदिन बीत जाती है
सारी बातें
याद करने के लिए सोचना पड़ते है
चेहरें,प्रसंग और कुछ शिकवे-शिकायत 

प्यार दुबक जाता है
किसी निर्वासित कोने में

मैं आँख बंद करके सोचता हूँ
तुम्हारी बेहद मामूली बातें
और मुस्कुरा पड़ता हूँ
जैसे कोई ध्यानस्थ योगी
पा गया हो कैवल्य का मार्ग

इनदिनों जब
तुम नही हो
तो मैं भी नही हूँ कुछ-कुछ जगह

मैं जहां हूँ वहां नही आती तुम्हारी आवाज़
नही दिखती तुम्हारी शक्ल
इनदिनों मैं अतीत नही
भविष्य में भटकता हूँ
एकदम निर्जन अकेला

और
सोचता हूँ
तुम अगर साथ होती तो
कभी बीतता ही नही
हमारा सांझा अतीत.

©डॉ. अजित