Sunday, December 30, 2018

कैप्शन

वो हमेशा खराब
कैप्शन देने के लिए
जाना जाता था

सारांश उसकी
समझ से परे था
वो हमेशा जीता रहा सार को
जीवन समझकर

हंसी को वो कह देता रात
मुस्कान को वो कहता था चिड़िया
रोने के लिए वो चस्पा कर देता
स्माइली

चाहे जीवन हो या कविता
उसके शीर्षकों में हमेशा रहा
सम्प्रेषणदोष

वो प्यार को कहता था दोस्ती
और नाराज़गी को लिख देता था
अधिकार

गुस्से में वो हँसता था विद्वानों की तरह
नि:सहायता में देने लगता था सलाह

खराब फोटो के लिए उसे
अक्सर माफ कर दिया
उन दृश्यों ने जो किए गए थे कैद

क्योंकि
वो हमेशा लेता था उनकी अनुमति
क्लिक करने से पहले

उसके कैप्शन से जो
विकसित किए गए अर्थ
वो हुए गल्प साबित बाद में

इसलिए जिन्होंने उसे पढ़ा
उसके क्लिक किए फोटो देखें
और नजरअंदाज कर दिए कैप्शन

वो जानते है यह बात कि
खत्म करने के बाद भी
उसके पास कितना रह जाता था
कितना अनकहा

खराब कैप्शन उसी की
एक बानगी भर थी
इसलिए यदि सारे कैप्शन
रख दिए जाएं एक पंक्ति में
वो लगेंगे एक कविता के जैसे

एक ऐसी कविता
जो किसी कविता का सार नही है।

©डॉ. अजित

Friday, December 28, 2018

उपयुक्त नही

वो एक खराब प्रेमी था
मगर कवि अच्छा था
वो एक औसत दोस्त था
मगर दोस्तों को लेकर
सबसे ज्यादा शिकायतें उसके पास थी

लोग उससे प्रेम करते थे
और दोस्त उससे रश्क

वो न प्रेम के लिए बना था
न दोस्ती के लिए

हिन्दी का एक जटिल शब्द है
उपयुक्त
जिसका भावार्थ हमेशा रहा है
शब्दार्थ से भिन्न

वो इस शब्द का सच्चा
किरदार था
जिसके बाद में सुंदर लेख में लिखा था
'नही'

इसलिए उसे जल्द भूल गई प्रेमिकाएं
माफ किया दोस्तों ने
मदद की हमेशा उम्मीद से बढ़कर

जो नही भूल पाए उसे
और जो नही कर पाए माफ
वो करते थे उसका जिक्र
अलग-अलग अवसरों पर
एक अलग सन्दर्भ के साथ

उसकी कविता और बात
दोनों ही जोड़ लेती है
कुछ अपिरिचित लोगों को एकसाथ

उसे कोई नही कहता था
खराब प्रेमी
या कमजोर दोस्त

सबकी बातों का
एक ही निकलता था सारांश
'उपयुक्त नही'

©डॉ. अजित

Monday, December 24, 2018

बहस

पिता के जाने के बाद
पिता पर लिखी
पांच कविताओं में
सिमट गई पिता की स्मृतियां

कविताएं पढ़कर
याद आती रही
सम्वेदना के स्तर पर
की गई खुद की बेईमानी
होता रहा विचित्र किस्म का
अपराधबोध

धीरे-धीरे सपनों में भी
आना बंद कर दिया पिता ने
पुराणों के अनुसार
हो सकता है
मिल गई हो उन्हें मुक्ति

पिता चले जाने के बाद
जीवन में बचे
किसी शोध प्रबन्ध की
सन्दर्भ सूची की तरह

रुचि और प्राथमिकताओं का
यह सबसे लज्जित समय था

घर की दीवार पर टँगी
पिता की युवा तस्वीर से
बमुश्किल आँख मिला पाता था मैं

लगता था जैसे
फिर शुरू हो जाएगी
एक नई बहस

पिता के जाने के बाद
बाहर की दुनिया से
बहस हो गई थी विदा
और अन्दर शुरू हो गई थी
एक नई मगर सतत बहस
जो नही ले रही थी थमने का नाम

ये बात केवल जानता था
मेरे अन्दर का पिता।

© डॉ. अजित

Saturday, December 22, 2018

स्माइल प्लीज़


ज़िन्दगी में
अलग-अलग अवसरों पर
फोटो क्लिक करते समय
बहुत से लोग कहतें है
स्माइल प्लीज़
और हम फैला देते है
अपनी मुस्कान
मगर
जब उसने फोटो लेते वक्त कहा
स्माइल प्लीज़
उसके बाद
होंठो पर जो मुस्कान आई
उसका एक रास्ता
अंदर आत्मा में उतरता था सीधा
इसलिए
आत्मा पर छप गई उसकी परछाई
उसके बाद की मुस्कानें
अलग-अलग मतलब और रास्तों से आई
उनका अंदर कहीं नहीं मिलता प्रमाण
देह त्यागने के बाद भी
आत्मा जरूर तलाशेंगी वो चेहरा
और कहेगी उसे धन्यवाद
अपनी ही भाषा में
जिसके कहने पर
पहली दफा आई थी
हमारे चेहरे पर
एक सच्ची मुस्कान।
©डॉ. अजित

Wednesday, December 19, 2018

संभव-असम्भव


जब उसे पता चला
प्रेम कविताएँ लिखता हूँ मैं
उसनें बातें कम कर दी

जब उसको बताया मैंने
एक कहानी लिख रहा हूँ मैं
उसने सुनाए अपने यात्रा वृत्तांत

मैं कहने ही वाला था
कि तुमसे प्रेम करता हूँ मैं
उसने मुझे कहा
अलविदा

प्रेम की स्मृति का
यह सबसे ताजा शब्द था मेरे जीवन का

जो आता रहा याद
हर प्रेम कविता में.
**
क्या ऐसा संभव था
कि हाथों में लेकर हाथ
कहा जा सकता
मुझे तुम्हारी सदा जरूरत है

क्या ऐसा संभव था
कि आँखों में आखें मिलाकर
कहा जा सकता
हमेशा के लिए
जा रहा है कोई

तुमनें जब पूछा
क्या ऐसा संभव है...?

मैंने दो जवाब दिए एक साथ

प्रेम में हर संभव के आगे असंभव था
और हर असंभव के आगे संभव.  

© डॉ. अजित

दुःखों का एकांत

अपने जीवन के
विकटतम दुःखों में
वो मुझसे सम्पर्क काट
लेती थी
बतौर दोस्त यह बात
मुझे लगती थी
बेहद खराब

उसे नही था पसन्द
अपने दुःख बांटना किसी के साथ
हमारी अधिकांश बातें
छिटपुट सुखों की बातें हैं
चाय या शराब की बातें हैं
यात्राओं और दर्शन की बातें है

हमारी बातों में यदि तलाशा जाए
कोई एक केंद्रीय भाव
तो मुश्किल होगा यह तय करना
वो किस किस्म की बातें हैं

उन्हें एक साथ पढ़कर
कोई कर सकता है
हमारी मित्रता पर भी
सन्देह

उसके विकट दुःखों में
मेरा कोई हस्तक्षेप नही रहा
इस बात का रहेगा
मुझे हमेशा बड़ा दुःख

उसे सांत्वना जैसे औपचारिक शब्दों से
होती थी एक खास चिढ़
इसलिए हमेशा रहना पड़ता था
शब्द चयन में थोड़ा सावधान

वो हमेशा लड़ी अपने
दुःखों से एकदम अकेले
उसके दुःखों की
औपचारिक सूचना के अलावा
कोई जानकारी नही मेरे पास

मेरे सुख
इस बात पर हिकारत से
देखतें थे मुझे
मुझे हंसते हुए होती थी बहुधा ग्लानि

क्योंकि

जब इधर हँस-मुस्कुरा रहा होता हूँ मैं
हो सकता है
ठीक उसी समय वो
घिरी बैठी हो जीवन के
सघन दुःखों के बीच
नितांत अकेली।

©डॉ. अजित

Sunday, December 9, 2018

निर्धन

तुमने बना लिए
अपने सूरज चांद
हवा और बादल

मगर नही बना पाई
अपना आसमान
ये बात जब
आसमान ने बताई मुझे

मैं देखता रहा धरती की तरफ

आसमान को उम्मीद थी
मैं बताऊंगा तुम्हें
अपना आसमान बनाने का
गुप्त कौशल

मैंने जब कहा
भूल गया हूँ मैं
समानान्तर प्रकृति रचने के सभी सूत्र

धरती ने देखा आसमान की तरफ
और मुझे किया घोषित

धरती-आसमान के मध्य फंसा
सबसे निर्धन प्राणी।

©डॉ. अजित

Monday, December 3, 2018

दिसम्बर

सड़क पार करने के लिए
जब करता हूँ इंतजार
ठीक उस वक्त लगता है
पार करना
जरूरत भले ही रही हो
फायदेमंद कभी नही रहा।
**
भीड़ गुजरती है आंखों के सामने से
अनजानी भीड़
मैं सोचने लगता हूँ
उनके परिजनों के बारें में
इतंजार के बारे में सोचना
सलीके से
भीड़ ने सिखाया मुझे
**
मेरी बातों में रस सूख गया है
मगर उनकी डंठल अभी हरी है
उस पर तुम सुखा देती हो
अपनी मुस्कान
मेरे बातों का पुनर्जन्म
तुम्हारी नमी के भरोसे है।
**
इनदिनों नींद कम आती है
मगर जब आती है
तब सपने में दिखते है पुरखे
बनकर भूत-प्रेत
डराना मनुष्य मरकर भी नही छोड़ता
प्यार करना कैसे भूल सकता है
जीते जी भला?

©डॉ. अजित