Tuesday, September 14, 2010

हकीकत

रात के स्याह सपनें

की स्याह सच्चाई

चांद के आधे होने का सच

और मेरे वजूद की जिरह का सवाल

कितना वाजिब है

यह सोचने से बेहतर है

रात पर तब्सरा करे

सुबह की नकल करते हुए

रोशनी पैदा करे

और हकीकत के हर पहलू

को जानकर अनजान बन जाने का

नाटक करे

ताकि अपनी नज़र वो

सवाल न कर सकें

जिनके जवाब वक्त के हिसाब से

बेहद जरुरी है

लेकिन अभी सही वक्त नही है

उन हरफो को बांचने का

जिनमे किस्सा है

मेरी-तेरी बर्बादी का...

न सलाह

न शिकायत और न नसीहत

अब वक्त है

बेवक्त नमाज़ पढने का

बिना अज़ान की परवाह किए

दुआ करने का

ताकि सलामत रह सके

एक हादसा

हकीकत मे...।

डा.अजीत

4 comments:

  1. बहुत ही उच्चकोटि का लेखन है थोड़ा जटिल परन्तु ,,,,बहुत अच्छा !!

    अथाह...

    dhnyvaad !!!

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. .

    हर पहलु को जानकर भी ,अनजान बन जाते हैं लोग।
    सबकी नज़र से बचकर भी , खुद से शर्मसार होते हैं लोग ।

    हर सच जो चाँद की तरह आधा होता है,
    उतना काफी है हकीकत से पर्दा हटा देने को।

    .

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