तेरे मुताबिक नजर आना जरुरी तो नही
अपनापन मेरा सलीका है मजबूरी तो नही
तुझे खुद अपनी अना का अहसास नही
इंसान है दोस्त तू मृग कस्तूरी तो नही
यूँ हर बात पर तेरी हाँ मे हाँ कहना
रवायत हो सकती है मगर जरुरी तो नही
दम कब के निकल जाते तेरे दम से
किसी के पास खुदा की मंजूरी तो नही
रबहर-ए-मंजिल के और भी है तलबगार
ऐसा भी अकेला तू हीरा कोहिनूरी तो नही
बहुत खूबसूरत गजल ...
ReplyDeleteBahut hi nayab!!!
ReplyDeleteBahut hi nayab!!!
ReplyDeleteसत्य ....
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