Thursday, March 17, 2016

प्रेम तंत्र

प्रेम कभी कभी लगता है
एक सात्विक किस्म का मजाक
जो थोड़ी खिलखिलाहट के बाद
छोड़ जाता है बहुत कुछ
सोचनें के लिए।
***
प्रेम करता हुआ मनुष्य
कुछ मामलों में नही होता है
बिलकुल निरापद
गलत अनुमानों का थोड़ा बहुत दोष
उसमें रहता है जरूर
बाद में कही जाती है जो भावुक मूर्खताएं
वास्तव में वही होती है
प्रेम की सबसे पवित्र चीज़।
***
जो प्रेम नही करतें
वो प्रेम को देखतें है
प्रेम न करना और प्रेम को देखना
ठीक वैसा है
जैसा बादल देख कहना
लगता है आज होगी बारिश।

©डॉ.अजित 

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