उन दोनों के मध्य
अचानक से खत्म हो गयी थी बात
जैसे खत्म हो जाती है
देहात को जाती छोटी सड़क
जैसे खत्म हो जाती है
किसी बच्चे की कच्ची पेंसिल
जैसे खत्म हो जाती है
रसोई की बची अंतिम रोटी
भूख से ठीक पहले
जब अचानक से खत्म हुई बात
तो बचा रहा एक निर्वात से भरा शून्य
जहां खो जाती थी ध्वनि
जहां इनकार कर देते थे शब्द आकार लेने से
उन्होंने टटोली अपनी अपनी स्मृतियां
नहीं बचा था वहां एक ऐसा शब्दकोश
जो दे सकता किसी ज्ञात शब्द को
नया अर्थ
और शुरू पाती कोई पुरानी बात
एक नए अर्थ के साथ।
©डॉ. अजित
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना मंगलवार १० मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
गहन भाव लिए अच्छी रचना ।
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब! गूढ़ भावों का मंथन
ReplyDeleteवाह बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
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