मैं चाहता था
कि उसे लेकर गलत निकले
सभी अनुमान मेरे
मुझे पता था
एकदिन बदल जाएंगे
सब गणित
और पीछे-पीछे हो लेगा
मनोविज्ञान
मेरी कोई अतृप्ति नहीं जुड़ी थी
उसके साथ
मगर इस बात से नहीं मिलता था
स्मृतियों को कोई मोक्ष
मैंने चाहा
थोड़ा प्रेम
ज्यादा भरोसा
और मध्यम अनुराग
यह चाह भी बदलती रही
यदा-कदा ही इसके
अनुरुप चला जीवन
बावजूद इन सब के
कल्पना का विकल्प बना यथार्थ
भविष्य का विकल्प बनी नियति
और आह में आती रही घुलकर
एक हितकामना
इतने कारण पर्याप्त थे
यह कहने के लिए कि
हम प्रेम की बातों के लिए बने थे
प्रेम के लिए नहीं।
©डॉ. अजित
सुन्दर
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बातों में अगर प्रेम है तो वह प्रेम से बेहतर है क्योंकि प्रेम केवल पीड़ा देता है . और बातें राहत ..बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभव्यक्ति ।
ReplyDeleteबावजूद इन सब के
ReplyDeleteकल्पना का विकल्प बना यथार्थ
भविष्य का विकल्प बनी नियति
और आह में आती रही घुलकर
एक हितकामना
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
वाह!!!
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteसुंदर लिंक शुक्रिया आपका बहुत बहुत
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