अक्सर उसने मुझे घर पहुंचाया
यह कहते हुए कि
कोई बेहद जरूरी शख़्स
घर पर कर रहा है मेरा इंतज़ार
अक्सर उसने मुझे अराजक होने से बचाए
यह कहते हुए कि
कामनाओं की दासता से बेहतर है
उनसे गुजर कर उनसे मुक्त हो जाना
अक्सर उसने मुझसे पूछे असुविधाजनक सवाल
ताकि मेरे पास बचा रहे प्रेम करने लायक औचित्य
सदा
अक्सर वो चुप हो गयी अचानक
एक छोटी लड़ाई के बाद
अक्सर हमें प्यार आया उन बातों पर
जो हकीकत में कहीं न थी
अक्सर उसका जिक्र कर बैठता हूँ मैं
कहीं न कहीं
जानते हुए यह बात
उसे बिलकुल पसंद नहीं था अपना जिक्र
किसी अक्षर
के जरिए नहीं बताया जा सकता
क्या था वह जो घटित हुआ था हमारे मध्य
जो आज भी आता रहता है याद अक्सर।
© डॉ. अजित
सुन्दर
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत खूब।
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