Wednesday, May 1, 2024

छल

 

कमोबेश प्रत्येक स्त्री कहती थी यें दो बात

एक बार वो आगे बढ़ जाए तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखती

एक बार भूलने के बाद वो याद नहीं करती किसी को


उसकी 'आह' में है श्राप जितनी शक्ति

जिससे नष्ट हो सकता है किसी का

समस्त संचित पुण्यकर्म

इसी तरह पुरुष दोहराता था यें दो बात

कोई उसे ठीक से समझ न सका आज तक

जल्दी भरोसा करने की उसे

एक खराब आदत रही सदा


दोनों बातें सच थी

दोनों बातें झूठ भी थी


सच और झूठ से इतर

ये दो बातें हजार बातों का निचोड़ भी समझी जा सकती थी


खासकर उन बातों का

जो स्त्री पुरुष एक सही समय पर नहीं कह पाए थे

एक दूसरे को


दरअसल, इन्हें उपचारिक बातें कहना अधिक उचित होगा

इन्हीं बातों के भरोसे स्त्री और पुरुष करते थे

एक दूसरे को माफ

और डरते थे छल से


क्योंकि ये दोनों किस्म की बातें

खुद से किया गया एक सात्विक छल था


जिस दोहराते समय

आसान होता था अपने आँसू पौंछना

और फिर एक लंबी गहरी सांस छोड़ते हुए

अपने सबसे करीब दोस्त यह कहना-


छोड़ो ! यह बात ,कोई दूसरी बात करते हैं।

© डॉ. अजित

 

6 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

आलोक सिन्हा said...

सुन्दर

Onkar said...

बहुत सुन्दर रचना

Anonymous said...

लाजवाब

Anonymous said...

Bahut khoob sir 🙏

रेणु said...

ये जीवन का विचित्र पर अनूठा फलसफा है साहब 🙏