Wednesday, May 8, 2024

बेहोशी

 

बहुत सारी कविताएं लिखने के बाद

मुझे हुआ यह बोध

कविताएं कम से कम लिखनी चाहिए

और अगर लिखी भी गई हो अधिक

तो उन्हें सौंप देना चाहिए एकांत के हवाले

 

साल-दर-साल बहुत जगह भाषण देने के बाद

मुझे हुआ यह बोध

सभा, गोष्ठी में बोलना है

सबसे निरर्थक कर्म

उतना बोलना चाहिए

जब कोई केवल आपको सुनना चाहे

चुप रहकर भी संप्रेषित किए जा सकते हैं

जीवन के सबसे गहरे अनुभव

 

बहुत जगह सम्मानित होने के बाद

मुझे हुआ यह बोध

सम्मान की भूख होती है सबसे कारुणिक

अपमान की गहरी स्मृति की तरह

एकदिन हम इस भूख के बन जाते हैं दास

 

बहुत से कार्यक्रमों में

मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ता, बीज वक्ता की भूमिका के बाद

मुझे हुआ यह बोध

सबसे झूठे और उथले होते हैं सूत्रधार की प्रशंसा के शब्द

फूल और शॉल का बोझ झुका देता है

साथी वक्ताओं की मूर्खतापूर्ण बातों पर विनीतवश हमारे कंधे

और खिसियाकर हम बजाने लगते हैं ताली

 

बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के बाद

मुझे हुआ यह बोध

छ्पना भी एक रोग है

बिन छ्पे होने लगती है ठीक वैसी बेचैनी

जैसे शराब के नशे में रात में पानी न मिलने पर होती है

 

दरअसल,

जिसे जीवन का विस्तार समझ

मुग्ध होते रहते हैं हम  

वो कामनाओं,मानवीय कमजोरियों की दासता का

होता है एक आयोजन भर

 

जब तक घटित होता है

जीवन का यह अनिवार्य बोध

हम जीवन से घटकर रह जाते हैं उतने कि

हमें मान की तरह प्रयोग कर

नहीं हल हो सकती

ज़िंदगी के गणित की एक छोटी सी समीकरण

 

तब होता यह गहरा अहसास

एक खिन्नता के साथ

लिखने, बोलने, छपने और सम्मान से

कहीं ज्यादा जरूरी था  

लोकप्रिय दबावों से खुद को बचाना

 

एक विचित्र बेहोशी के कारण

जिसे नहीं बचा पाए हम।

 

©डॉ. अजित

 

 

 

5 comments:

  1. बहुत ही सारगर्भित बोध...
    लाजवाब सृजन ।

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  2. बहुत सुन्दर रचना

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  3. जी अति सर्वत्र वर्जयते! छपास हो या बकवास दोनों रोग बुरे हैं! इनकी लत बहुत खतरनाक है🙏🙏

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