Wednesday, September 25, 2024

मिलना

 अब हम कभी नहीं मिलेंगे

यह बात कहने में जितनी खराब लगी


उससे कहीं ज्यादा खराब था

मिलने की प्रत्याशा में घुलते रहना

रात-दिन


जैसे ठंडे पानी में धीरे धीरे घुलती है चीनी


षड्यंत्र की तरह बनते-बिगाड़ते रहना

मन के अधूरे कार्यक्रम


मिलना,कभी-कभी मिलना

या कभी नहीं मिलना 

ये सब दिखते भले अलग-अलग हो 

मगर इनके पीछे का केंद्रीय भाव एक है


किसी से मिलना करना चाहिए

तब तक स्थगित

जब तक आप इसे समझने न लगे 

मात्र एक दैवीय संयोग


दो लोग कभी एक जैसी तीव्रता से

मिलने के लिए हो उपलब्ध 

यह एक दुर्लभ बात है


मनुष्य की कामनाओं की दुनिया में

सबसे छोटी है किसी से मिलने की कामना 

यह धीरे-धीरे बना देती है मनुष्य को भाग्यवादी


मिलने और बिछड़ने की 

लाख सम्भावनाओं के बीच

एक सवाल करता है रात दिन हमारा पीछा

कि


कितना बेहतर होता 

अगर हम कभी मिले ही न होते! 


©डॉ. अजित 

4 comments:

  1. गहन भावाभिव्यक्ति।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. गहन भाव

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