बातें बहुत कहना चाहता हूं, कहता भी हूं, पर हमेशा अधूरी रह जाती हैं, सोचता हूं, कहूंगा...शेष फिर...
Thursday, December 31, 2009
सलाह
“अक्ल ये कहती है सयानो से बनाए रखना
दिल ये कहता है, दीवानो से बनाए रखना
लोग टिकने नही देते कभी चोटी पर
जान पहचान ढलानो से बनाए रखना
जाने किस मोड पे मिट जाए निशा मंजिल के
राह के ठौर- ठिकानो से बनाए रखना
हादसे हौसले तोडेंगे सही है फिर भी
चन्द जीने के बहानो से बनाए रखना
शायरी ख्वाब दिखाएगी कई बार
मगर
दोस्ती गम के फसानो से बनाए रखना
आशिया दिल मे रहे आसमान आंखो मे
यू भी मुमकिन है उडानो से बनाए रखना
दिन को जो दिन रात को जो रात नही कहते है
फांसले उनके बयानो से बनाए रखना...। (संकलित)
मित्रो,
कुछ पंक्तिया अपने सोए हुए अहसास को कुरेद जाती है ऐसा मैने महसुस किया जब उपरोक्त पंक्तिया मैने कही पर पढी थी..। इसके रचयिता का नाम तो मुझे ज्ञात नही है लेकिन जो भी है बात बडे कांटे की कही है सो अब ये आपको सौप रहा हू..। अगर कोई बन्धु इसके रचयिता का नाम जानता हो तो मुझे भी बताने का कष्ट करे ताकि किसी महफिल मे इसको पढने से पहले उनको सादर आभार व्यक्त किया जा सके..।
डा.अजीत
दस्तावेज…
“पुराने पत्र
पुराने मित्र
और
पुरानी यादे
कभी पुरानी नही हो पाती है
इनमे हर बार एक खास नयापन होता है
अपनेपन की भीनी-भीनी सुगन्ध के साथ
कभी यू ही बिना किसी विशेष कारण की उदासी
और बिना वजह का हास्य- विनोद
इनके गम्भीर साक्षी होते है
ये पुराने पत्र
जिनमे घुली होती है
अपनेपन की मिठास
अधिकार के साथ शिकवे-शिकायत
और सबसे बडी बात
एक सहज स्वाभाविकता मन को मन से जोडने की
बिना किसी औपचारिक मानसिक भूमिका के
कभी पीडा तो कभी महत्वकाक्षाओ
के ये सांझे दस्तावेज
हमेशा विकट अवसाद के क्षणो मे
एक इंच मुस्कान लाने की स्थाई क्षमता रखते है
हम आज जब
दूनियादारी से पीडित होकर
अशांत/असहज जीने के आदी से हो गये है
तब इन पत्रो की विषय-विस्तु
समय के उतार चढाव को नकार कर
एक विचित्र गर्व से भर देती है अपने मित्र चयन पर
मन होता है नियति को धन्यवाद भेजने का...
और अतीत से जुडी हर यादे
अपने साथ दूर तक ले जाती है
जहा सिर्फ हम और हमारे अतीत की यादो का कारवा
उदासी की गर्द को उडाता हुआ
बेपरवाह निकल पडता है
अपनो के बीच से
अपनो तक
और आज जब बहुत से
पुराने मित्र अपरिहार्य कारणो से
लौकिक रुप से सम्पर्क मे नही है
तब ये पत्र/यादे ही है
कि उनके साथ न होने का अहसास
टीस की बजाए
बोझिल और औपचारिक दूनिया मे
बिना स्वार्थ के उर्जा देता है
और खिन्न चेहरे पर
एक इंच मुस्कान लाने का अवसर
और
शायद उन्हे भी...”
डा.अजीत
पुराने मित्र
और
पुरानी यादे
कभी पुरानी नही हो पाती है
इनमे हर बार एक खास नयापन होता है
अपनेपन की भीनी-भीनी सुगन्ध के साथ
कभी यू ही बिना किसी विशेष कारण की उदासी
और बिना वजह का हास्य- विनोद
इनके गम्भीर साक्षी होते है
ये पुराने पत्र
जिनमे घुली होती है
अपनेपन की मिठास
अधिकार के साथ शिकवे-शिकायत
और सबसे बडी बात
एक सहज स्वाभाविकता मन को मन से जोडने की
बिना किसी औपचारिक मानसिक भूमिका के
कभी पीडा तो कभी महत्वकाक्षाओ
के ये सांझे दस्तावेज
हमेशा विकट अवसाद के क्षणो मे
एक इंच मुस्कान लाने की स्थाई क्षमता रखते है
हम आज जब
दूनियादारी से पीडित होकर
अशांत/असहज जीने के आदी से हो गये है
तब इन पत्रो की विषय-विस्तु
समय के उतार चढाव को नकार कर
एक विचित्र गर्व से भर देती है अपने मित्र चयन पर
मन होता है नियति को धन्यवाद भेजने का...
और अतीत से जुडी हर यादे
अपने साथ दूर तक ले जाती है
जहा सिर्फ हम और हमारे अतीत की यादो का कारवा
उदासी की गर्द को उडाता हुआ
बेपरवाह निकल पडता है
अपनो के बीच से
अपनो तक
और आज जब बहुत से
पुराने मित्र अपरिहार्य कारणो से
लौकिक रुप से सम्पर्क मे नही है
तब ये पत्र/यादे ही है
कि उनके साथ न होने का अहसास
टीस की बजाए
बोझिल और औपचारिक दूनिया मे
बिना स्वार्थ के उर्जा देता है
और खिन्न चेहरे पर
एक इंच मुस्कान लाने का अवसर
और
शायद उन्हे भी...”
डा.अजीत
Tuesday, December 29, 2009
कतरने...
कतरने ...(खाली वक्त की नसीहते)
(एक)
उसने खत को जब- जब
जोडकर पढना चाहा
खुद को खुद से घटाना पडा.. ।
(दो)
अदबी जमात का सलीका भी खुब
उसी बात पे दाद मिले
जिस पर कभी एतराज था..।
(तीन)
बुलन्दी की नुमाईश मे मसरुफ रहा वो शख्स
जिसकी उडान मे हौसला भी अपना न था..।
(चार)
अपनी मरजी के सफर के लिए,ये एतिहात जरुरी है
मुकाम खुद से न छिपाया जाए
उदास रहबर अक्सर हौसला तोड देते है
इस बार एक कदम तन्हा ही उठाया जाए।
(पांच)
शिकारी जिसे समझ के परिन्दे ठहर गये थे
वो कमान का सौदागर निकला..।
(छह)
उसकी वादाखिलाफी पे ऐतराज नही
मलाल बस इस बात का रहा
वो खुद से मुकर गया..।
(सात)
लम्हा- लम्हा बिखरा हू, खुद का साथ निभाने मे
एक उम्र गुजर गयी ऐब को हुनर बनाने मे
वादा करके मुकरना कोई आसान नही
मगर वो हौसला कहा से लाउ
जो जरुरी है तेरा साथ निभाने मे..।
(आठ)
कुछ लोग जिन्दगी मे यू भी गमगीन बन गये
हुनर तो वक़्त पे काम न आ सका
ऐब तौहीन बन गये..।
(नौ)
उसके लहजे मे सियासी सोहबत की रवानी लगे
तन्ज कसके रन्ज करने की आदत पुरानी लगे
मेरी नजर मे जो है बेहद आम
दुनिया को वो शख्स खानदानी लगे..।
(दस)
शहर का होके तुमने पाया क्या खुब मकाम
कदमो मे थकान,कडवी जबान, अधुरी मुस्कान
और बस एक किराये का मकान....।
(ग्यारह)
सच कहने की आदत बुरी नही
ख्याल बस ये रखना
सलाह नसीहत न बन जाए..।
(बारह)
उसका वजूद जज्बात की अदाकारी मे खो गया
अफसोस, तालीम भी तजरबा न दे सकी
पहले किताबी बना
अब हिसाबी हो गया..।
(तेरह)
मुझसे अपना हिस्सा समेट ले
ऐसा न हो फिर बहुत देर हो जाए
मै फकीर हू बस इस लिहाज रख
क्या होगा अगर दुआ बेअसर हो जाए..।
(चौदह)
तेरी अदा सबको तेरा फन नजर आए
इसके लिए जरुरी है तुझे सलीक और तहजीब मे फर्क नजर आए..।
शेष फिर...
आपका अपना
डा.अजीत
© डा.अजीत
(एक)
उसने खत को जब- जब
जोडकर पढना चाहा
खुद को खुद से घटाना पडा.. ।
(दो)
अदबी जमात का सलीका भी खुब
उसी बात पे दाद मिले
जिस पर कभी एतराज था..।
(तीन)
बुलन्दी की नुमाईश मे मसरुफ रहा वो शख्स
जिसकी उडान मे हौसला भी अपना न था..।
(चार)
अपनी मरजी के सफर के लिए,ये एतिहात जरुरी है
मुकाम खुद से न छिपाया जाए
उदास रहबर अक्सर हौसला तोड देते है
इस बार एक कदम तन्हा ही उठाया जाए।
(पांच)
शिकारी जिसे समझ के परिन्दे ठहर गये थे
वो कमान का सौदागर निकला..।
(छह)
उसकी वादाखिलाफी पे ऐतराज नही
मलाल बस इस बात का रहा
वो खुद से मुकर गया..।
(सात)
लम्हा- लम्हा बिखरा हू, खुद का साथ निभाने मे
एक उम्र गुजर गयी ऐब को हुनर बनाने मे
वादा करके मुकरना कोई आसान नही
मगर वो हौसला कहा से लाउ
जो जरुरी है तेरा साथ निभाने मे..।
(आठ)
कुछ लोग जिन्दगी मे यू भी गमगीन बन गये
हुनर तो वक़्त पे काम न आ सका
ऐब तौहीन बन गये..।
(नौ)
उसके लहजे मे सियासी सोहबत की रवानी लगे
तन्ज कसके रन्ज करने की आदत पुरानी लगे
मेरी नजर मे जो है बेहद आम
दुनिया को वो शख्स खानदानी लगे..।
(दस)
शहर का होके तुमने पाया क्या खुब मकाम
कदमो मे थकान,कडवी जबान, अधुरी मुस्कान
और बस एक किराये का मकान....।
(ग्यारह)
सच कहने की आदत बुरी नही
ख्याल बस ये रखना
सलाह नसीहत न बन जाए..।
(बारह)
उसका वजूद जज्बात की अदाकारी मे खो गया
अफसोस, तालीम भी तजरबा न दे सकी
पहले किताबी बना
अब हिसाबी हो गया..।
(तेरह)
मुझसे अपना हिस्सा समेट ले
ऐसा न हो फिर बहुत देर हो जाए
मै फकीर हू बस इस लिहाज रख
क्या होगा अगर दुआ बेअसर हो जाए..।
(चौदह)
तेरी अदा सबको तेरा फन नजर आए
इसके लिए जरुरी है तुझे सलीक और तहजीब मे फर्क नजर आए..।
शेष फिर...
आपका अपना
डा.अजीत
© डा.अजीत
निर्वासन के दो साल
मित्रो !
आज लगभग दो साल का वर्चुअल निर्वासन झेलने के बाद एक बार फिर नेट की इस आभासी दुनिया मे लौट आया हू। एक शुरुवात जो लगभग दो साल पहले हुई थी जो अभी तक शैशवकाल मे सिसक रही थी अब उसके यौवन की तैयारी आरम्भ करने का विचार है। ब्लाग जगत मे अपने दो ब्लागो के माध्यमो से मैने आपसे एक आत्मीय सम्वाद आरम्भ किया था उसी कडी को दोबारा जोडने का प्रयास करुंगा। अभी ज्यादा नही लिखना चाहता हू क्योंकि संकल्प प्रकाशित करने से कमजोर पड जाते सो इस बार बिना लम्बी चौडी योजनाओ के सीधा सम्वाद होगा मन का मन से..।
एक आशा है कि आप का सहयोग,मार्गदर्शन और आर्शीवाद मेरे इस बाल प्रयास को मिलता रहेगा…
नेट की दुनिया मे अपना पता रहेगा-
www.shesh-fir.blogspot.com
www.drajeet.blogspot.com
शेष फिर...
डा.अजीत
आज लगभग दो साल का वर्चुअल निर्वासन झेलने के बाद एक बार फिर नेट की इस आभासी दुनिया मे लौट आया हू। एक शुरुवात जो लगभग दो साल पहले हुई थी जो अभी तक शैशवकाल मे सिसक रही थी अब उसके यौवन की तैयारी आरम्भ करने का विचार है। ब्लाग जगत मे अपने दो ब्लागो के माध्यमो से मैने आपसे एक आत्मीय सम्वाद आरम्भ किया था उसी कडी को दोबारा जोडने का प्रयास करुंगा। अभी ज्यादा नही लिखना चाहता हू क्योंकि संकल्प प्रकाशित करने से कमजोर पड जाते सो इस बार बिना लम्बी चौडी योजनाओ के सीधा सम्वाद होगा मन का मन से..।
एक आशा है कि आप का सहयोग,मार्गदर्शन और आर्शीवाद मेरे इस बाल प्रयास को मिलता रहेगा…
नेट की दुनिया मे अपना पता रहेगा-
www.shesh-fir.blogspot.com
www.drajeet.blogspot.com
शेष फिर...
डा.अजीत