Thursday, March 18, 2010

फोन

युक्तियुक्त सात्विक झुठ
बोझिल बातें
औपचारिक वायदे
अनमने मन
मे अभिनय के पुट के
साथ अपनेपन का आत्मीय
प्रदर्शन
उधार के शब्द और संवेदना
का प्रमाणिक
यांत्रिक दस्तावेज़
मेरा फोन मुझे
साक्षी भाव से स्वीकार करना वाला
अब तक का सबसे विश्वसनीय साथी लगा
पल भर के लिए सोचता हूं
अगर इसमे कोई सजीवता होती
तो कब का छोड गया होता
सार्वजनिक करके मेरे दोहरे व्यक्तित्व को
एक अजीब सा सम्बन्ध
है अपना
जब भी अकेलेपन ने घेरा
मेरे एक सच्चे दोस्त की तरह
इसने संवाद बचाया
उन लोगो के साथ
जो मेरी तमाम बदतमीजियों के बाद भी
मेरी फिक्र करतें है
ऐसा कई बार हुआ कि
आत्महत्या करने का मन हुआ
तब इसके सहारे ही दिलासा मिली
और मै बच गया
अगर यह निमित्त न होता तो
आज मै कृतज्ञता प्रकट करने के लिए
न बचता
अपनी आखिरी सांस तक यह मुझे जोडे
रखता है इस औपचारिक दूनिया से
एक आग्रह के साथ
ऐसा दिन मे कईं बार होता है
जब मै उकता कर इसको क्या तो बंद
कर देता हूं
या छोड देता हूं इसका गला घोंट कर
वाईब्रेशन मोड पर
लेकिन यह मुझे कभी नही छोडता
और सच कहूं तो
इसके बंद होने पर
अब मुझे गहरी चिंता होने लगी है
ऐसा लगता है कि
वो सेतु टूट गया है
जिसके एक पार मै अकेला खडा हूं
और दूसरी तरफ सारी दूनिया है
अपने शिकवे-शिकायतों के साथ
कोई इतना अपना कैसे हो सकता है
जब आपको पता है कि
इसका अपना कुछ भी नही
कुछ भी हो
इसे खरीदते वक्त मैने नही
सोचा था कि इतना अपनापन होगा इसमें
बिना स्वार्थ के
कम से कम उन औपचारिक संबन्धो से
बेहतर है इसका होना
जिनके लिए मै कभी काम का नही रहा हूं
और
शायद हम दोनो
एक दूसरे के बडे काम के हैं...।
डॉ.अजीत

Wednesday, March 17, 2010

सपनें

एकांत के कुछ
पल अधुरे सपनो की
बुनावट के सच्चे
गवाह हो सकते है
भले ही इनकी गवाही की
कभी जरुरत न पडे
लेकिन
इन सपनो की उधेडबुन
मे उलझा मन अपनी झुठी
तारीफ से कुछ पल के लिए ही सही
सुलझ सकता है
जी सकता है कुछ पल अपनी तरह से
अपने वजूद के साथ
सपनें देखना और जीना इनके साथ
आज की नही कल की जरुरत थी
और कल के सहारे आज की हकीकत
मन के अवसाद
को संजो कर रखने का साहस
इतना आसान भी नही कि
हम जी सके बिना सपनो की
समीक्षा किए
अधुरे सपने
दरअसल एक अहसास है
खुद के अधुरे होने का
जिसे पुरा करने के लिए
दिल की नही दिमाग की जरुरत है
ऐसे सपनों के सहारे
एक समानांतर जिन्दगी जीने बाद
सपनों पर बहस करना
जरुरी नही लगता
लेकिन
जब कोई अपना सपना
बदलता है
किसी भी वजह से
तब अधुरे सपनें
भर देते है
एक अजीब एहसास से
और दिल करता है
एक और उधार के
सपने के साथ जीने का
अपने अधुरेपन के साथ...।
डॉ.अजीत

Sunday, March 7, 2010

यात्रा

साथ रहने के लिए
साथ खडे होना भी जरुरी होता है
एक मित्र ने समझाया कि
साथ देखने की सीमाएं क्या होती है
देखा जा सकता
दायें-बायें या फिर अपने से ऊपर
छदम गर्व के साथ
नीचे देखने का वक्त नही होता है
साथ के लोगो के पास
और न ही साहस
अपने साथ चले लोगो को
नीचे देखने के लिए
सर्वाइकल से कुछ ज्यादा दर्द होता है
प्रेक्टिकल होना और साथ खडा होना
दोनो एक सी बात है
कदमो की लडखडाहट के तब ज्यादा
मायनें नही है
जब साथ मे चल रहे हो
कुछ शुभचिंतक
साथ की यात्रा के लिए
सावधानी और अभिनय
दोनो जरुरी है
क्योंकि आपने मार्ग क्यों
बदला इसकी समीक्षा और कारण
जाने बिना
साथ छुट जाता है
फिर अभिनय ही आत्मघाती होने से बचा सकता है
अभिनय खुद के लिए
इतना जरुरी नही होता
जितना कि
साथ के लोगो के एहसास मे बनें
रहने की मानवीय कमजोरी के लिए
लेकिन उपलब्धि के समीकरण
से उपजी साथ चलने की इस
शर्त से
यात्रा कितनी पीडादायक
हो सकती है
इसका अहसास
भावुकता की आड लेकर
चेता रहा है बार-बार
और मै साथ खडे रहने की
तैयारी कर रहा हूं
सपनो की कीमत पर....।
डॉ.अजीत