Monday, January 24, 2011

मुसाफिर

भीड में खडे लोग

और इंतज़ार में

खडा मुसाफिर

एक दूसरे से

अनजान थे लेकिन

अचानक अजनबीपन से उपजा

मैत्री भाव

बात करने की एक

वजह बनता गया

कभी अनजान चेहरों

के कौतुहल से अलगाव

तो कभी जिज्ञासा बढी और

सबकी चिंता,दुख अपने लगने लगे

एक पल के लिए ऐसा भी

हुआ कि अपनी उधेडबुन

को भूल कर मन

सब के बीच बावरा बन निकल पडा

जहाँ उसे लिफ्ट लेने के लिए

खडा होना था

वहाँ पर न कोई लिफ्ट दे रहा था

न ले रहा था

सब कुछ ठहराव मे भागने जैसे था

करीब-करीब अपने आप को

भीड मे खो देने की कवायद जैसा

वह घर से निकला

भीड का हिस्सा बना

और फिर खो गया

उस रास्ते की धुन में

जिसकी मंजिल पर दो रास्ते

जाते थे

एक सीधा दिल का

और दूसरा दूनियादारी का

अफसोस भीड,रास्ता और

मंजिल तीनों का मिज़ाज

अलग था उसके मिज़ाज़ से

लेकिन उसका सफर जारी रहा

और थोडा-थोडा दिलचस्प भी

मंजिल का पता पूछने तक...।

डा.अजीत

Saturday, January 8, 2011

नये साल पर

नये साल की

नई सुबह पर

कुछ गैर मौलिक किस्म

के एसएमएस के साथ

बंटता अपनापन

औपचारिक होते सम्बन्धों

के धुएं मे लिपटी

स्याह ठंडी शुभकामनाएँ

और शिकायतों,वादों के कारोबार में

सेंसेक्स की तरह डूबता हुआ

मन ऐसे अवसरों पर

असहज हो जाता है

जब दूनिया मस्ती मे मस्त हो

पैर थिरक रहे हों

और शराब से कान हो गये हो लाल

सिमटता हुआ मेरा वजूद

भागना चाहता है बेहिसाब

ताकि मै सांस ले सकूँ

ऐसी जगह

जहाँ मेरे जूतें,कपडों

और टाईटन की घडी से कीमत

न तय होती हो

अपेक्षाओं का सूखा जंगल न हो

हर साल 31 दिसम्बर की रात

को शुरु हुई मेरी यह दौड

पूरे साल चलती रहती है

लेकिन अब मै थकने भी लगा हूँ

तभी तो अनायास ही मुहँ से निकल ही

जाता हैप्पी न्यू ईयर....सैम टू यू...!
डा.अजीत