तुमने कहा
चलो चलते है
मै चला
फिर कहा ऐसे नही चलते
मै रुक गया
फिर हम चले
और चलते गये
निसंवाद
आज भी उन्ही कदमों
का पीछा करते चल रहा हूँ
तुम कभी बोझिल हो जाते
हो
कभी जीवंत
ऐसे हमसफर के साथ
चल कर मंजिल को देखना
अब बस एक शगल है मेरा
न तुम्हे कहीं पहूंचना
है
और न मुझे ही
फिर लोग क्यों अपेक्षाओं
के
शुष्क जंगल में
हमारा पीछा कर रहे है
डरो नही!
हमारी परछाई हम से बडी
नज़र आ रही है
इसलिए खतरे की बात नही
बस चलो...
इससे पहले कि सांझ हो
जाएं...।
डॉ.अजीत