विदा
पर
सभी
कहते है
फिर
मिलेंगे
इस
औपचारिक झूठ
के
सहारे लोग जिन्दगी काट देते है
कुछ
दोस्त बिना कुछ कहे
अचानक
नेपथ्य
मे
चले जाते है
कुछ
साथ रहकर भी
बोझिल
बने रहते थे
ये
विदा के समय के
सम्बोधन
किसने बनाएं और क्यों
यह
सोचकर दिल उदास हो जाता है
बेहतर
होता
मिलने
और बिछडने के क्रम में
न
कुछ कहा जाता
न
कुछ सुना जाता
बस
जीया जाता वो लम्हा
जिस
की वजह से कोई मिलता है
तो
कोई यूँ की खो जाता है..।
डॉ.अजीत