मैं तुम्हारे गले लगना चाहता था
शायद थोड़ा हिचकियों के साथ सिसकना भी
बस ये बात कभी कह नही पाया
क्या ऐसा करने से
मैं साबित हो जाता
थोड़ा कमजोर थोड़ा अपरिपक्व?
नही पता तुम्हारा जवाब
मगर वो हिचकियाँ आज भी दर्ज है
तुम्हारी याद की शक्ल में
मैं थोड़ी देर के लिए
तुम्हारा हाथ अपने हाथों में लेकर
बैठना चाहता था एकांत में
मगर कभी बढ़ा नही पाया
खुद ही का हाथ
मुझे लगा ऐसा करने से
संप्रेषित हो सकता है
एक ऐसा अर्थ
जिसका फिलहाल कोई अर्थ नही
अर्थ अपना अनर्थकता पर
आज भी हंसता है मेरे एकांत में
और मैं बह जाता हूँ
किसी धार्मिक नदी के बहाव की तरह
जिसे बाद में समझा जाता है
मोक्ष के निमित्त आत्महत्या
मैंने कई बार देनी चाही तुम्हें आवाज़
मगर मेरे शब्द खो गए
कहीं बीच में
ये वही बीच था जहाँ मुझे तुमसे कहने था
आंखों में आंखें डालकर एकबार
हां ! तुम मेरी जरूरत हो
तुम हो एक न बदलने वाली आदत
ये कुछ अफसोस है मेरे पास
एकदम निपट बेकार
बेहतर होता है मैं कह देता या कर देता
जो भी कहा है उपरोक्त
उपरोक्त मेरे जीवन का खेद है
जिसके नीचे ग्लेशियर की शक्ल में
शांत पड़ा हूँ मैं
मेरा वेग है अज्ञात
मेरा जो भी है ज्ञात
उसमें असंख्य ऐसे ही
कर्म और वचन है
जो रह गए है निशक्त
मैं आज भी कहना चाहता हूँ तुमसे
मेरे जीवन में नही है
तुम्हारा कोई विकल्प
मगर नही कह सकूंगा
शायद इसी कारण
तुम्हारे जीवन में बन गए है
मेरे विकल्प।
©डॉ. अजित
शायद थोड़ा हिचकियों के साथ सिसकना भी
बस ये बात कभी कह नही पाया
क्या ऐसा करने से
मैं साबित हो जाता
थोड़ा कमजोर थोड़ा अपरिपक्व?
नही पता तुम्हारा जवाब
मगर वो हिचकियाँ आज भी दर्ज है
तुम्हारी याद की शक्ल में
मैं थोड़ी देर के लिए
तुम्हारा हाथ अपने हाथों में लेकर
बैठना चाहता था एकांत में
मगर कभी बढ़ा नही पाया
खुद ही का हाथ
मुझे लगा ऐसा करने से
संप्रेषित हो सकता है
एक ऐसा अर्थ
जिसका फिलहाल कोई अर्थ नही
अर्थ अपना अनर्थकता पर
आज भी हंसता है मेरे एकांत में
और मैं बह जाता हूँ
किसी धार्मिक नदी के बहाव की तरह
जिसे बाद में समझा जाता है
मोक्ष के निमित्त आत्महत्या
मैंने कई बार देनी चाही तुम्हें आवाज़
मगर मेरे शब्द खो गए
कहीं बीच में
ये वही बीच था जहाँ मुझे तुमसे कहने था
आंखों में आंखें डालकर एकबार
हां ! तुम मेरी जरूरत हो
तुम हो एक न बदलने वाली आदत
ये कुछ अफसोस है मेरे पास
एकदम निपट बेकार
बेहतर होता है मैं कह देता या कर देता
जो भी कहा है उपरोक्त
उपरोक्त मेरे जीवन का खेद है
जिसके नीचे ग्लेशियर की शक्ल में
शांत पड़ा हूँ मैं
मेरा वेग है अज्ञात
मेरा जो भी है ज्ञात
उसमें असंख्य ऐसे ही
कर्म और वचन है
जो रह गए है निशक्त
मैं आज भी कहना चाहता हूँ तुमसे
मेरे जीवन में नही है
तुम्हारा कोई विकल्प
मगर नही कह सकूंगा
शायद इसी कारण
तुम्हारे जीवन में बन गए है
मेरे विकल्प।
©डॉ. अजित