Monday, November 12, 2018

खत और किताब


सागर के किनारे इसलिए
मीठे रहते है
उनके पास सुरक्षित होते है
नदी के अंतिम पदचिन्ह
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पहाड़ इसलिए खड़े रहते है
सदा
उन्हें दिखते है
घाटी के उलझाव
पहाड़ का एकांत
इसलिए भी घाटी से बड़ा है.
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हवा की नही होती
एक तय दिशा
वो बहती है दिशा बदल-बदल कर
इसलिए
हवा को लेकर होते है
अपने अपने अनुमान
अनुमान नही बदल पाते इसलिए
कभी जीवन की दिशा.
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झील धैर्य का
अज्ञात भाषा में अनुवाद है
जिसकी लिपि को लेकर है  
सबके अलग-अलग दावे
धैर्य का मूल पाठ
इसलिए है संसार से विलुप्त.
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रास्तों सबसे
चुस्त गवाह है
दोस्ती और प्रेम के
मध्य अटके किसी खूबसूरत रिश्तें के
मगर कोई नही लेता उनकी गवाही
एक समय के बाद रास्तों को भूलना
बाध्यता है
मगर रास्तें नही भूलते कभी किसी को
इस बात को सबसे बेहतर समझते है
दोराहे-चौराहे.
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पेड़ जब छोड़ते है
अपना कोई पत्ता
उस पर लिखा होता है
धरती के नाम एक सन्देश
धरती उसे नही पढ़ती
क्योंकि पत्ते पर जिस तरफ लिखा होता है खत
धरती पर उस तरफ से कभी नही पड़ता वो
ये बात पेड़ नही जानता
हवा जानती है, धूल जानती है.

© डॉ. अजित


Sunday, November 4, 2018

प्रेम की स्मृतियाँ


जिससे प्रेम किया जाए
वो हम उम्र हो
यह जरूरी तो नही
ये किसी फिल्म या नाटक का
संवाद हो सकता है
वो उससे दस साल बड़ी थी
मगर वो उससे दस साल छोटा नही था
किसी की तार्किकता पता करने के लिए
किया जा सकता है
इस वाक्य का प्रयोग
मगर जीवन हो या प्रेम
वो संवाद या तर्क के भरोसे नही चलता
वो चलता है
उन बातों के भरोसे
जिनका कोई ठीक-ठीक
जवाब नही होता है हमारे पास.
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बातों में मनोविज्ञान न हो
तो बचने लगते है लोग
हर कोई खुद को तलाशता है
बातों और मुलाकातों में
आदमी जब होता है गुमशुदा
उसे देख कर
कहा जा सकता है
गुमशुदगी एक निजी चीज है
जो दिखती जरुर सार्वजनिक है.
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प्रेम मिलता रहा मुझसे
भेष बदल-बदल कर
हर बार मैंने जाना प्रेम को
प्रेम के खो जाने के बाद
इस मामलें में किसी काम नही आयी
मेरी स्मृतियाँ
दरअसल प्रेम की स्मृतियाँ
पीड़ाओं को याद रखने के लिए थी
हमेशा तत्पर
मनुष्य को समझना
मुझे कभी नही समझा पाया प्रेम
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मेरे हाथों में
तुम्हारी रेखाओं की प्रतिलिपियाँ
चस्पा थी
मेरी रेखाएं जोर से देती थी मुझे आवाज
मगर तुम्हारे स्पर्श
आवाज़ को हमेशा रोक लेते थे
अपने इर्द-गिर्द
मेरे जीवन में आशाएं
तुम्हारी रेखाओं के फलादेश का परिणाम था  
तुम्हारे कारण
मैं भूल गया था अपना प्रारब्ध
इस  पर हंसती थी मेरी रेखाएं
और मैं समझता था
वक्त बदलने वाला है.
© डॉ. अजित