मैं मुद्दत से नहीं सोया
वैसी नींद
जिसके बाद उठकर हँसना अच्छा लगे
मैं मुद्दत से नहीं रोया उस तरह
कि लगे धुल गए मर के सब संताप
मैं मुद्दत से नहीं मिला किसी से उस अंदाज़ में
कि एक बार फिर से मिलने की बची रहे इच्छा
मैंने मुद्दत से नहीं की ऐसी यात्रा
जिसे बार-बात बताने का दिल करे दोस्तों को
मैंने मुद्दत से नहीं बता पाया मैं किसी को
दिल की ऐसी कोई बात जिसे सुन चुप्पी लग जाए
मुद्दत से करता रहा हूँ उपरोक्त सभी काम
मगर मुद्दत से नहीं किया एक भी काम
जैसा करना चाहिए था मुझे
मुद्दत से मेरे अंदर एक खेद है
जिसे नहीं दे पाता मैं कोई एक आकार
मुद्दत से मैंने ऐसी कविता नहीं लिखी
जिसे लोग पढ़े कविता की तरह और समझे एक कहानी
मुद्दत से मैं देख रहा हूँ शून्य में
बिना किसी दार्शनिकता के
सम्भव है
मुद्दत बाद जब यह बात पढ़ेंगे लोग
तो शायद कहेंगे एक स्वर में यह एक बात
मुद्दत से दिखा नहीं है ऐसा कोई शख्स
मुद्दत से मिला नहीं है यह शख्स।
©डॉ. अजित
वाह
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...कोरोनाकाल के बाद कई चीज़ें बिखर गईं, कई बातें मुद्दतों से नहीं हुई |
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteमुद्दत बाद पढ़ा आपका लिखा । बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
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