सबसे मुश्किल दिन
इसलिए भी मुश्किल थे
तुम अनुपस्थित थी
उन दिनों में
विराट एकांत से भरी रातों में
सबसे बड़ा भय अकेलेपन का नहीं था
जो डर था, वो इतना छोटा था
मगर तुमसे कभी बताया न जा सका
दुःखों पर बात करते-करते
हम ऊब गए थे प्रेम की
कोमल बातों से भी
इस बात पर मेरे दुःख खुश नहीं थे
विकट तनावों के मध्य
एक तनाव तुम्हें खोने का भी था
जिसका उपचार नहीं जानता था मैं
'दो असफल लोग कभी मित्र नहीं हो सकते'
यह उक्ति आती थी बार-बार याद
मैं पढ़ता था इसे करके संशोधित
मैत्री और प्रेम की परिभाषाओं के अनुसार
जीवन की यातनाओं से लड़ते हुए
आती थी तुम्हारी हुलस कर याद
बावजूद इस जानकारी के
तुम्हें संघर्षरत व्यक्ति के बखान से थी चिढ़
तुम्हारी अनुपस्थित का किया
मैंने विलुप्त भाषाओं में अनुवाद
तुम्हारी अनुपस्थिति में मुझे याद आयी
भूली हुई लिपियाँ
तुम्हारी अनुपस्थिति की लिखावट को
शायद ही पढ़ सकेगा कोई
यदि पढ़ पाया कोई तो
वो बता सकेगा मेरे बाद कि
जब-जब तुम अनुपस्थित थी जीवन में
जीवन में अनुपस्थित था
भाषा का सौन्दर्य
आत्मा का ताप
और थोड़ी करुणा थोड़ा प्यार।
©डॉ. अजित
सुन्दर
ReplyDeleteकिसी की अनुपस्थिति को इतनी गहराई से महसूस करना कि उसे कोई पढ़ भी ना सके और फिर भी बहुत कुछ छूटता हुआ सा लगे, यही तो प्रेम की पराकाष्ठा है शायद, हम ईश्वर की अनुपस्थिति को महसूस न भी करें पर उसके बिना खो जाते हैं जगत से सत्य, शिव और सौंदर्य !
ReplyDeleteएहसासों की गहन अनुभूति को शब्दों में ढालना अद्भुत क्षमता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
गहन अनुभूति और अथाह प्रेम का समन्वय और सुंदर रचना !!
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १० जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
प्रेम के कई अर्थों को समेटे जीवन से जुड़ी अर्थपूर्ण कविता
ReplyDeleteअनुपस्थिति का अहसास ही जीवन जीने के कई सिरे खोलता है.
बहुत सुंदर कविता
दुःखों पर बात करते-करते
ReplyDeleteहम ऊब गए थे प्रेम की
कोमल बातों से भी ।
भावों को अद्भुत रूप से लिखा है । बेहतरीन
विकट तनावों के मध्य
ReplyDeleteएक तनाव तुम्हें खोने का भी था
जिसका उपचार नहीं जानता था मैं
बहुत सुंदर रचना.... 🙏🙏🙏🙏🙏
जब-जब तुम अनुपस्थित थी जीवन में
ReplyDeleteजीवन में अनुपस्थित था
भाषा का सौन्दर्य
आत्मा का ताप
और थोड़ी करुणा थोड़ा प्यार।
वाह!!!
प्रेम की पराकाष्ठा ही तो यह कि तुम्हारी अनुपस्थिति को लिखा मगर विलुप्त भाषाओं में...अनिर्वचनीय प्रेम को शब्द दे देंगी शायद विलुप्त भाषाएँ...
लाजवाब सृजन।