Wednesday, June 8, 2022

ताप

 सबसे मुश्किल दिन

इसलिए भी मुश्किल थे

तुम अनुपस्थित थी 

उन दिनों में


विराट एकांत से भरी रातों में

सबसे बड़ा भय अकेलेपन का नहीं था

जो डर था, वो इतना छोटा था

मगर तुमसे कभी बताया न जा सका


दुःखों पर बात करते-करते

हम ऊब गए थे प्रेम की 

कोमल बातों से भी 


इस बात पर मेरे दुःख खुश नहीं थे


विकट तनावों के मध्य 

एक तनाव तुम्हें खोने का भी था

जिसका उपचार नहीं जानता था मैं 


'दो असफल लोग कभी मित्र नहीं हो सकते'

यह उक्ति आती थी बार-बार याद

मैं पढ़ता था इसे करके संशोधित 

मैत्री और प्रेम की परिभाषाओं के अनुसार 


जीवन की यातनाओं से लड़ते हुए 

आती थी तुम्हारी हुलस कर याद 

बावजूद इस जानकारी के

तुम्हें संघर्षरत व्यक्ति के बखान से थी चिढ़


तुम्हारी अनुपस्थित का किया

मैंने विलुप्त भाषाओं में अनुवाद

तुम्हारी अनुपस्थिति में मुझे याद आयी 

भूली हुई लिपियाँ


तुम्हारी अनुपस्थिति की लिखावट को

शायद ही पढ़ सकेगा कोई 


यदि पढ़ पाया कोई तो

वो बता सकेगा मेरे बाद कि

जब-जब तुम अनुपस्थित थी जीवन में

जीवन में अनुपस्थित था

भाषा का सौन्दर्य

आत्मा का ताप

और थोड़ी करुणा थोड़ा प्यार।


©डॉ. अजित

9 comments:

  1. किसी की अनुपस्थिति को इतनी गहराई से महसूस करना कि उसे कोई पढ़ भी ना सके और फिर भी बहुत कुछ छूटता हुआ सा लगे, यही तो प्रेम की पराकाष्ठा है शायद, हम ईश्वर की अनुपस्थिति को महसूस न भी करें पर उसके बिना खो जाते हैं जगत से सत्य, शिव और सौंदर्य !

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  2. एहसासों की गहन अनुभूति को शब्दों में ढालना अद्भुत क्षमता।
    बहुत सुंदर।

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  3. गहन अनुभूति और अथाह प्रेम का समन्वय और सुंदर रचना !!

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. प्रेम के कई अर्थों को समेटे जीवन से जुड़ी अर्थपूर्ण कविता

    अनुपस्थिति का अहसास ही जीवन जीने के कई सिरे खोलता है.

    बहुत सुंदर कविता

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  6. दुःखों पर बात करते-करते

    हम ऊब गए थे प्रेम की

    कोमल बातों से भी ।
    भावों को अद्भुत रूप से लिखा है । बेहतरीन

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  7. विकट तनावों के मध्य

    एक तनाव तुम्हें खोने का भी था

    जिसका उपचार नहीं जानता था मैं

    बहुत सुंदर रचना.... 🙏🙏🙏🙏🙏

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  8. जब-जब तुम अनुपस्थित थी जीवन में

    जीवन में अनुपस्थित था

    भाषा का सौन्दर्य

    आत्मा का ताप

    और थोड़ी करुणा थोड़ा प्यार।

    वाह!!!
    प्रेम की पराकाष्ठा ही तो यह कि तुम्हारी अनुपस्थिति को लिखा मगर विलुप्त भाषाओं में...अनिर्वचनीय प्रेम को शब्द दे देंगी शायद विलुप्त भाषाएँ...
    लाजवाब सृजन।

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