प्रेम में उसका चुनाव
विकल्पहीनता का परिणाम था
उसे पात्र कहा गया
मगर बरकरार रही सुपात्र की चाह
वो एक अच्छा विकल्प था
मगर विकल्प कभी अच्छा नहीं होता
यह बात जानते थे दोनों
उसने कभी बताया नहीं
मगर वो चाहती थी उसका
एक नूतन संस्करण
निःसन्देह यह कोई खराब चाह भी न थी
मगर कामनाएं अतृप्त रहती है प्राय: प्रेम में
वे दोनों टकरा गए थे जिस महूर्त पर
नहीं मिलता था उसका विवरण
किसी मार्तंड पंचांग में
उनका टकराना
एक दुर्लभ खगोलीय घटना न थी
जिसके लगाया जा सके
भविष्य का अनुमान
मगर वे विश्लेषण से मुक्त होकर
रोज करते थे कुछ वायदे खुद से
नहीं बताते थे एक दूसरे से कुछ बात
प्रेम में संकल्प बनते बनते रह गए था वो
विकल्प होने की यह सबसे बड़ी बाधा थी
विकल्प और संकल्प के मध्य
सब कुछ बुरा ही बुरा नहीं था
उनकी बातों का यदि किया जाए भाष्य
तो दीक्षित हो सकते थे कई प्रेमी युगल एकसाथ
उनकी कामनाओं का नहीं किया जा सकता था अनुवाद
वे लिपि और भाषा की सीमाओं कर गए थे उल्लंघन
उनके पास नहीं थी कोई योजना
नहीं थे भविष्य के साझा स्वप्न
वे कहते रहे दिन को दिन
और रात को रात
प्रेम में किसी का विकल्प होना
अधूरे संकल्प के जैसा था कुछ-कुछ
जो मरते वक्त आता था याद
और देह छोड़ देती थी मोक्ष की कामना
उस प्रेम का यही था एकमात्र मोक्ष।
©डॉ. अजित
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना रविवार १२ जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
विकल्प और संकल्प के बीच
ReplyDeleteसब कुछ बुरा बुरा नहीं था ।
गहन भाव , गहन प्रस्तुति ।
विकल्प का दृष्टिकोण बङा नया सा लगा ।
ReplyDeleteसुंदर समीकरण संकल्प बद्ध कविता का ।
बहुत गूढ़ भाव उकेरी रचना।
ReplyDeleteअप्रतिम।
उकेरती पढ़ें कृपया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
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