बातें बहुत कहना चाहता हूं, कहता भी हूं, पर हमेशा अधूरी रह जाती हैं, सोचता हूं, कहूंगा...शेष फिर...
Saturday, February 6, 2010
एक बात
तुम्हारे साथ
मै अकेला नही होता
मेरा साथ होता
मेरा अकेलापन
जिसको बिसरा कर
तुम आग्रह पर आग्रह किए जाती हो
और मै सापेक्ष अभिनय
इस नाट्यशाला मे ऐसा नही
मुझे हमेशा द्वन्द होता हो
कभी कभी मै लुत्फ भी ले रहा होता हू
बिना तुम्हे बताए
तुम्हारी अपेक्षाओं के अनुसार मै हर
चीज उधार की ले आया हूं
ये जो हंसी है
यह भी किस्तो पर है
जिसकी
ईएमआई मुझे देनी पडेगी
अवसाद के आलाप के साथ
सच कहूँ तो
मुझे कभी कभी जलन भी होती है
तुमसे
जब तुम हंसती हो बिना वजह
मै कोई नीरस जीवन के एकाकीपन
को मिटाने वाला
साधन तो नही बन गया हू
तुम्हारे जीवन मे
ऐसा भी नही है
कि मेरा कोई विकल्प न हो तुम्हारे पास
फिर कोई अकारण बिना किसी राग के
कैसे साथ-साथ घंटो बिता सकते है
बौद्धिक चवर्णा करते हुए
जिसका कोई अर्थ भी नही है
मै कभी कभी सोचता हूँ
कंही ऐसा तो नही
कि
तुम्हारा अपने वर्ग से बहिष्कार किया गया हो
सपने बुनने वाली विलासित पीढी से
आउटडेटड होकर तुम दार्शनिक बन गई हो
कुछ भी हो
मैने एक बात का अनुभव किया है
नदी और स्त्री तट से विद्रोह करके
एक अंजानी प्यास मे आगे बढती जाती है
कही तुम विद्रोहणी तो नही
अन्यथा मत लेना
इस आभासी दूनिया की इस
आभासी यात्रा मे
न तो तुम मेरी सहयात्री हो
न ही सम्बन्धी
न मित्र
न परिचित
फिर ऐसा क्या है कि
अक्सर हम असहमत होते हुए भी
सहमत होते है
और सच कहूँ
तुम्हारे सत्संग से
मै तो
निरुद्देश्य जीवन जीने का अभ्यस्त सा हो गया हू
क्योंकि तुम्हारे पास
प्रेमी-प्रेमिका वाली लम्बी चौडी योजनाए नही है
न ही तुम्हारी दिलचस्पी
मेरी आर्थिक प्रगति मे है
तुमने आज तक नही पूछा कि
मुझे क्या बनना है
जीवन मे
इस तरह से तो तुम
इस निजता के ध्यान मे सहयोग ही कर रही हो
सच-सच बताना
क्या तुम सच मे जी सकती हो
बिना सम्बोधन के
बिना बंधन के
सोच समझ के जवाब देना
अभी कोई जल्दी नही है
वैसे मुझे पता है तुम्हारा जवाब
तुम जोर से हंसोगी
और कहोगी
तुम तो पागल हो
चलो कही कॉफी पीते है चल के
अब मै क्या कहूँ ...।
डॉ.अजीत
....सुन्दर रचना,प्रभावशाली!!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....भाव भी, अभिव्यक्ति भी , रचना भी !
ReplyDeleteग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ReplyDeleteनिरुद्देश्य जीवन जीने का अभ्यस्त सा हो गया हू
ReplyDeleteक्योंकि तुम्हारे पास
प्रेमी-प्रेमिका वाली लम्बी चौडी योजनाए नही है
न ही तुम्हारी दिलचस्पी
मेरी आर्थिक प्रगति मे है
तुमने आज तक नही पूछा कि
मुझे क्या बनना है
जीवन मे
इस तरह से तो तुम
इस निजता के ध्यान मे सहयोग ही कर रही हो
सच-सच बताना
क्या तुम सच मे जी सकती हो
बिना सम्बोधन के
बिना बंधन के
सोच समझ के जवाब देना
अभी कोई जल्दी नही है
वैसे मुझे पता है तुम्हारा जवाब
तुम जोर से हंसोगी
और कहोगी
तुम तो पागल हो
चलो कही कॉफी पीते है चल के
अब मै क्या कहूँ ...।
sir aap ko mere shaath ghati ghatna kaise pata hai ..
lekin jo bhi ho bahut achhi lagi mujhe...... thanks sir
vyaktigat dharatal par likhi gai hone ke baavjood iska vistaar sarv vyapi hai. sundar
ReplyDeleteरहा नहीं गया,प्यासे को कोई पानी दिखाए और प्यासा शांत रह जाए भला ऐसा हो सकता है। सच कहूँ तो पसंद आई आपकी ये रचना क्योंकि पागलों वाली बातें हमें लुभाती है। इसे बुकमार्क कर लिया सदा के लिए ।
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