Sunday, May 23, 2010

द लास्ट एडवाइस

आखिरी सलाह

बता कर उसने मुझसे

जो बात कही

उसे तर्क के आधार पर तो खारिज़ नही

किया जा सकता है

लेकिन यदि इतना बुद्दिवादी मन

पहले से होता तो मै सलाह ले

नही दे रहा होता

क्योंकि विकल्पो का रोजगार

करना कोई बडी बात नही है

सलाह के कारोबार मे कोई बुराई भी नही है

अपनेपन मे ही ये सब होता है

लेकिन आखिरी मान कर दी गई सलाह

नसीहत का भी मिला-जुला काम

करती है

उसने जो भी कहा

मै उसे अगर मान भी लूं

तब भी सलाह की जरुरत मेरी जिन्दगी

से कम होनी वाली नही है

दरअसल यह एक लत की जैसी है

एक बार लग जाए तो

फिर किसी भी निर्णय की

बिना सार्वजनिक/व्यक्तिगत पुष्टि

किए मन अनमना सा ही रहता है

शायद मेरी इसी आदत से

परेशान होकर उसने जबरन

अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया

और आक्रमक होकर कहा-

इट्स माई लास्ट एडवाइस

मै एक मिनट तक यही सोचता रहा कि

क्या एडवाइस भी लास्ट हो सकती है

दिल ने कहा नही

दिमाग ने कहा जरुरत क्या है किसी की एडवाइस की

ज्ञान बघारते वक्त नही सोचा जाता

कि सलाह का लेन-देन

कितना जोखिम भरा काम है

किसी को समझना और उसको

ठीक-ठीक वही बता देना जो वह कभी नही

सुनना चाहता

और खुश हो जाना अपनी वाकपटुता पर

ऐसी बहुत से सलाहें मेरे पास आज भी

सुरक्षित रखी है जो शायद मेरा

जीवन ही बदल देती

मै वो न होता जो आज हूं

नही लिख रहा होता कविता

न ही बात बेबात पर किसी से नाराज़ हो जाता

एक सधी मुस्कान और

औपचारिकता की चासनी मे लिपटे शब्द होते मेरे पास

और सबसे बडी चीज़ उपलब्धि होती

जिसकी ठसक पर मै

लोगो को मजबूर कर सकता था अपनी

घटिया से घटिया बात पर

स्तुति गान करने के लिए

और शायद सहमति मे उठे हाथों

की एक लम्बी फेहरिस्त होती मेरे पास

ऐसी सलाहें मैने अभी तक इसलिए

बचाए रखी कि

क्या पता कब जरुरत पड जाए

बुरे वक्त मे

और आज जब मैने लास्ट एडवाइस ली

तब मुझे लगा कि

अगर मैने मान ली होती उसकी कुछ पुरानी सलाहें

तो मै भी अपनी आधी-अधुरी अंग्रेजी

और पूरी बेशर्मी के साथ कह पाता

इट्स माई लास्ट एडवाइस

कैन यू बिलिव ओन इट?

डा.अजीत

Tuesday, May 4, 2010

माफी चाहूंगा दोस्त

कुछ ऐसी बातें

जिनका जिक्र करना जरुरी हो

गया है आज

ये मेरी-तुम्हारी नही हमारे बीच की बातें है

एक दशक से भी ज्यादा

वक्त जिया है तुम्हारे साथ

ऐसा कई बार हुआ है कि

बिना किसी प्रतिक्रिया के मैने तुम्हारे

उस व्यवहार को स्वीकार किया

जिस पर कोई भी बिफर सकता था

आहत हो सकता था

या फिर संबन्ध तोड सकता था

मुझे लगा कि मेरा मौन रह जाना

शायद तुम्हारे संवेदनशील मन को सोचने के लिए मजबूर करें

कि कोई किसी के लिए क्यों अपरिहार्य होता हैं

लेकिन शायद तुम्हें

स्पष्ट बोलने और कडवा बोलने मे फर्क

नज़र नही आया

तमाम ज्ञान बांटने के बाद भी

कभी-कभी तुम कितने निर्धन लगे

आग्रह के मामले में

अपनी शर्तों पर जीना प्रशंसा की बात है

लेकिन शर्तो को जीने की बाधा बनाना

मुझे ठीक नही लगा कभी

मेरे जैसे बहुत से लोग

तुम्हें स्वीकार करते गये

तुम्हारी तमाम बदतमिजियों के बाद भी

क्योंकि उनकी आशा का केन्द्र रहे तो तुम

तुम्हारें संघर्ष से प्ररेणा मिली है

तुम्हें शायद ही कभी इस बात का अंदाजा हो

कि तुम्हारें छ्द्म स्वाभिमान की कीमत

लोगो ने अपने संबन्धो को खोकर चुकाई हैं

तुम्हारा व्यवहार न कभी औपचारिक बन पाया

और न आत्मीय ही

बस तुमने अपनी सुविधा से हर संबन्ध की परिभाषा गढी

और उसको जिया अपनी तरह से

खेद है कि तुमको इस स्वरुप मे स्वीकार करने के बाद

तुम अपने आपको ही स्वीकार नही कर पाये

अपनी अपेक्षा के केन्द्र मे लोगो को सतत बनाए रखना

और उनकी अपेक्षाओं को सिद्दांत की ओट लेकर

तार्किकता से खारिज करना

तुम्हारी एक अतिरिक्त योग्यता रही हैं

जो शायद तुम्हे अपनी विशिष्टता लगी हो

मित्र उपदेशक न लगे इसी वजह से

मैने कभी प्रतिकार नही किया

लेकिन आज जब तुम अपने दोष को योग्यता के रुप

मे जीने के आदी हो गये हो

तब तुम्हारा ही ब्रह्म वाक्य

जिसके सहारे तुमने कितनी बार

अपने दायित्व से पलायन किया हैं बुद्दिमानी के साथ

सौंप रहा हूं तुम्हे

अब

माफी चाहूंगा दोस्त...

डॉ.अजीत