कुछ ऐसी बातें
जिनका जिक्र करना जरुरी हो
गया है आज
ये मेरी-तुम्हारी नही हमारे बीच की बातें है
एक दशक से भी ज्यादा
वक्त जिया है तुम्हारे साथ
ऐसा कई बार हुआ है कि
बिना किसी प्रतिक्रिया के मैने तुम्हारे
उस व्यवहार को स्वीकार किया
जिस पर कोई भी बिफर सकता था
आहत हो सकता था
या फिर संबन्ध तोड सकता था
मुझे लगा कि मेरा मौन रह जाना
शायद तुम्हारे संवेदनशील मन को सोचने के लिए मजबूर करें
कि कोई किसी के लिए क्यों अपरिहार्य होता हैं
लेकिन शायद तुम्हें
स्पष्ट बोलने और कडवा बोलने मे फर्क
नज़र नही आया
तमाम ज्ञान बांटने के बाद भी
कभी-कभी तुम कितने निर्धन लगे
आग्रह के मामले में
अपनी शर्तों पर जीना प्रशंसा की बात है
लेकिन शर्तो को जीने की बाधा बनाना
मुझे ठीक नही लगा कभी
मेरे जैसे बहुत से लोग
तुम्हें स्वीकार करते गये
तुम्हारी तमाम बदतमिजियों के बाद भी
क्योंकि उनकी आशा का केन्द्र रहे तो तुम
तुम्हारें संघर्ष से प्ररेणा मिली है
तुम्हें शायद ही कभी इस बात का अंदाजा हो
कि तुम्हारें छ्द्म स्वाभिमान की कीमत
लोगो ने अपने संबन्धो को खोकर चुकाई हैं
तुम्हारा व्यवहार न कभी औपचारिक बन पाया
और न आत्मीय ही
बस तुमने अपनी सुविधा से हर संबन्ध की परिभाषा गढी
और उसको जिया अपनी तरह से
खेद है कि तुमको इस स्वरुप मे स्वीकार करने के बाद
तुम अपने आपको ही स्वीकार नही कर पाये
अपनी अपेक्षा के केन्द्र मे लोगो को सतत बनाए रखना
और उनकी अपेक्षाओं को सिद्दांत की ओट लेकर
तार्किकता से खारिज करना
तुम्हारी एक अतिरिक्त योग्यता रही हैं
जो शायद तुम्हे अपनी विशिष्टता लगी हो
मित्र उपदेशक न लगे इसी वजह से
मैने कभी प्रतिकार नही किया
लेकिन आज जब तुम अपने दोष को योग्यता के रुप
मे जीने के आदी हो गये हो
तब तुम्हारा ही ब्रह्म वाक्य
जिसके सहारे तुमने कितनी बार
अपने दायित्व से पलायन किया हैं बुद्दिमानी के साथ
सौंप रहा हूं तुम्हे
अब
‘माफी चाहूंगा दोस्त...’
डॉ.अजीत
भावनाओं की बहुत अच्छी अनुभूति...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
ReplyDelete'स्पष्ट बोलने और कडवा बोलने मे फर्क'
ReplyDeleteसच ,यह समझ भी होनी बहुत ज़रूरी है रिश्तों को बनाये रखने के लिए...
जीना शर्तों पर मगर../सिद्दांत की ओट लेकर तार्किकता से खारिज करना/..बहुत सी बातें इस कविता के माध्यम से आप ने कहीं.
छ्द्म स्वाभिमान की कीमत लोग संबन्धो को खोकर चुकाते हैं...बहुत ही अच्छी बात कहीं आप ने...
--- अपरोक्ष रूप में 'तुम को इन्गीत करते हुए 'दुनिया में व्यवहार कला सिखाती हुई सार्थक रचना .
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रूप से प्रस्तुत किया है! लाजवाब रचना !
ReplyDeleteअच्छा लिखा है।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteव्यावहारिकता की सीख देती कविता ...
ReplyDeleteअच्छी है ...!!