Friday, June 4, 2010

शर्ते लागू

उस विज्ञापन गुरु की

व्यवहारिक सोच की खुले मन से तारीफ की जा सकती है

जिसने स्टार युक्त शर्ते लागू

का कांसेप्ट बनाया

बात की बात और बिना चोट की लात

यह बात मात्र विज्ञापन की दूनिया के लिए ही

नही बनी

इसका खुब प्रयोग रिश्तो मे भी किया जा सकता है

न बात कहने मे बुरी लगे

और न सुनने मे

बार कोड के टैग की तरह

जज़्बात दिखेगा खुब

लेकिन अहसास आपका

कितना महसूस कर पाते है

अक्सर शर्ते लगाकर जीना

एक शगल हो सकता है

जिसमे तडका लगा अपने को सुरक्षित

करने का

लेकिन दोस्त! शर्ते लागू

के स्टार मे वो चमक नही होती

जो बिना लाग-लपेट के मोल भाव मे

बाजार और रिश्तें देखने मे अलग-अलग है

और न ही इनमे तुलना की जा सकती

लेकिन एक बात जो अक्सर

सामने आ ही जाती है

शर्ते लागू होने के स्टार से मन

आकर्षित तो सकता है

लेकिन प्राइस टैग

बार-बार पलट कर देखते हुए यही ख्याल

आता है

कही हमे ठगा तो नही जा रहा है

फिर चाहे वो बाजार हो या

ज़ज्बात पर टिके रिश्तों की बुनियाद...।

डा.अजीत

Thursday, June 3, 2010

ऐसा ही हूँ मैं

मैं शेर हूँ, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती,
मैं लहज़ा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती
किसी दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़वाहट नहीं जाती ।
(उपरोक्त पंक्तियाँ मेरी मौलिक नहीं हैं मैंने कही पर पढ़ी और अच्छी लगी सो अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दी है,वैसे जिसने भी लिखी है काफी दमदार लिखी है उसको आभार)