उस विज्ञापन गुरु की
व्यवहारिक सोच की खुले मन से तारीफ की जा सकती है
जिसने स्टार युक्त शर्ते लागू
का कांसेप्ट बनाया
बात की बात और बिना चोट की लात
यह बात मात्र विज्ञापन की दूनिया के लिए ही
नही बनी
इसका खुब प्रयोग रिश्तो मे भी किया जा सकता है
न बात कहने मे बुरी लगे
और न सुनने मे
बार कोड के टैग की तरह
जज़्बात दिखेगा खुब
लेकिन अहसास आपका
कितना महसूस कर पाते है
अक्सर शर्ते लगाकर जीना
एक शगल हो सकता है
जिसमे तडका लगा अपने को सुरक्षित
करने का
लेकिन दोस्त! शर्ते लागू
के स्टार मे वो चमक नही होती
जो बिना लाग-लपेट के मोल भाव मे
बाजार और रिश्तें देखने मे अलग-अलग है
और न ही इनमे तुलना की जा सकती
लेकिन एक बात जो अक्सर
सामने आ ही जाती है
शर्ते लागू होने के स्टार से मन
आकर्षित तो सकता है
लेकिन प्राइस टैग
बार-बार पलट कर देखते हुए यही ख्याल
आता है
कही हमे ठगा तो नही जा रहा है
फिर चाहे वो बाजार हो या
ज़ज्बात पर टिके रिश्तों की बुनियाद...।
डा.अजीत