Sunday, October 27, 2013

अंतिम सलाह...



उससे बिछडते वक्त  
एक आखिरी सलाह
देना चाहता था वह
लेकिन
न जाने क्यों
लब कंप कपा गए
और शब्द अपना
अर्थ खो बैठे
आखिरी वक्त पर
दी जाने वाली सलाह
वैसे तो नसीहत सी लगती है
लेकिन न माने जाने
की पर्याप्त सम्भावना होने के बावजूद भी
दिल कह ही उठता है
कुछ करने और कुछ न करने के लिए
वक्त,समीकरण और
सम्बन्धो की धुरी के आसपास
घूमता शब्दों का दायरा
प्रयास तो करता है
अर्थ को अनर्थ से बचाने का
लेकिन
संयोग या विडम्बना देखिए
जब वक्त अंतिम होता है
सम्बन्धो की जोड-तोड का
तब
सलाह नसीहत लगने लगती है
और नसीहत का प्रतिरोधी होना
अंतिम सलाह के अर्थ,मूल्य और महत्व को समाप्त कर
सम्बन्धो की परिभाषा बदल देता है
अंतिम सलाह अर्थहीन हो जाती है
लोग सयाने लगने लगते है
सलाह
मात्र एक बौद्धिक प्रलाप...।
डॉ.अजीत