Saturday, February 17, 2024

अक्षर

 

अक्सर उसने मुझे घर पहुंचाया

यह कहते हुए कि

कोई बेहद जरूरी शख़्स

घर पर कर रहा है मेरा इंतज़ार


अक्सर उसने मुझे अराजक होने से बचाए

यह कहते हुए कि

कामनाओं की दासता से बेहतर है

उनसे गुजर कर उनसे मुक्त हो जाना


अक्सर उसने मुझसे पूछे असुविधाजनक सवाल

ताकि मेरे पास बचा रहे प्रेम करने लायक औचित्य सदा


अक्सर वो चुप हो गयी अचानक

एक छोटी लड़ाई के बाद


अक्सर हमें प्यार आया उन बातों पर

जो हकीकत में कहीं न थी


अक्सर उसका जिक्र कर बैठता हूँ मैं

कहीं न कहीं

जानते हुए यह बात

उसे बिलकुल पसंद नहीं था अपना जिक्र


 किसी अक्षर के जरिए नहीं बताया जा सकता

क्या था वह जो  घटित हुआ था हमारे मध्य

जो आज भी आता रहता है याद अक्सर।

© डॉ. अजित