मैं चाहता था
कि उसे लेकर गलत निकले
सभी अनुमान मेरे
मुझे पता था
एकदिन बदल जाएंगे
सब गणित
और पीछे-पीछे हो लेगा
मनोविज्ञान
मेरी कोई अतृप्ति नहीं जुड़ी थी
उसके साथ
मगर इस बात से नहीं मिलता था
स्मृतियों को कोई मोक्ष
मैंने चाहा
थोड़ा प्रेम
ज्यादा भरोसा
और मध्यम अनुराग
यह चाह भी बदलती रही
यदा-कदा ही इसके
अनुरुप चला जीवन
बावजूद इन सब के
कल्पना का विकल्प बना यथार्थ
भविष्य का विकल्प बनी नियति
और आह में आती रही घुलकर
एक हितकामना
इतने कारण पर्याप्त थे
यह कहने के लिए कि
हम प्रेम की बातों के लिए बने थे
प्रेम के लिए नहीं।
©डॉ. अजित