Wednesday, January 31, 2018

नींद

स्त्री ने नींद मांगी
ईश्वर मुस्कुराया
और पुरुष की तरफ देखा
जैसे ईश्वर खुद पुरुष पर आश्रित हो
नींद के मामलें में

स्त्री ने साथ माँगा
पुरुष ने इसे हाथ समझा
उसने पकड़ लिया कसकर
वो खुद फिसलकर गिरा
और गिरा दिया स्त्री को भी अपने साथ
इस तरह से गिरना बनी एक दैवीय घटना

इस बात के लिए  
ईश्वर को नही दिया गया कोई दोष
स्त्री जरुर समझी जाती रही कमजोरी का प्रतीक

स्त्री मांगने में करती रही संकोच
वो देती रही नि:संकोच
ईश्वर ने इस बात पर नही थपथपायी उसकी पीठ
वो व्यस्त रहा पुरुष के पलायन पढ़ने में

जब थक कर नींद न मिली
चाह कर साथ न मिला
तब भी ईश्वर पर संदेह नही किया एक स्त्री ने

तमाम उपेक्षाओं के बावजूद
ईश्वर से सर्वाधिक संवाद रहा स्त्री का
प्रार्थनाओं की शक्ल में

दरअसल
ईश्वर और पुरुष दोनों इस बात पर सहमत थे
स्त्री को नींद की जरूरत नही है

इसलिए मुद्दत से
जाग रही है स्त्री
और बेफिक्र होकर  सो रहा ईश्वर
पुरुष के ठीक बगल में.

©डॉ. अजित


Friday, January 5, 2018

बातें अनकही

उसने कहा
मेरा पार्टनर कहता है
राइटर्स और पोएट्स से दूर रहा करो
होते है वो आदतन लंपट
बिछाते है शब्दों का जाल
दिखाते है सपनों की दुनिया
कल्पना की लगा देते है लत
तो रहना चाहिए तुम्हें दूर
मैंने कहा
ये तुम कह रहे हो?
उसने आश्चर्य में भरकर कहा
हां ! रहना चाहिए दूर हर उस चीज़ से
लग जाती हो जिसकी लत
मैंने कहा
उसके बाद उसने कहा
क्या तुमने खुद पर तो नही ले ली ये बात
मैंने कहा,ले भी लूं तो क्या फर्क पड़ता है?
उसने जाते हुए कहा
अब पता चला बॉस
एकदम सही कहता है पार्टनर।
***
मैं तुम्हें एकदिन
खाने पर बुलाना चाहती हूँ
मगर सोचती हूँ
क्या कहकर मिलवाऊंगी तुम्हें सबसे
वो जो तुम हो नही या वो जो तुम हो
मैं हंस पड़ा यह सुनकर
ठीक है चाय पर बुलाते है किसी दिन
क्यों चाय पर मिलवाना नही पड़ता क्या?
मैनें हंसते हुए पूछा
तुम चाय पीते हुए लगते हो इतने जहीन
कि तार्रुफ़ की जरूरत नही होगी मुझे
वो चाय आज तक उधार है।
***
मैंने आजतक शराब नही पी
मगर एकबार पीना चाहती हूँ
वो भी तुम्हारे साथ
उसने एकदिन गम्भीरता से कहा
मेरे साथ ही क्यों
मैंने पूछा
तुम्हारे पास अतीत के किस्से है
बाकि के पास मेरे हिस्से है
इसलिए
ये क्या बात हुई भला
मैंने हंसते हुए कहा
तुम नही समझोगे
ये बात समझ आई मुझे
कभी पीने के बाद।
***
जब मैं नही रहूंगी
तुम्हारे पास
तब मेरी बातें रहेंगी
ये बड़ी तसल्ली है मेरे लिए
मैनें कहा
ये सच कहा तुमनें
एक झूठ भी कहूँ उसने कहा
तुम्हें और तुम्हारी बातों को
जल्द भूल जाऊंगी मैं।

©डॉ. अजित

Thursday, January 4, 2018

अच्छा

कितना अच्छा हो
जिसकी आए याद
आ जाए तभी उसका एक फोन

कितना अच्छा हो
जिससे नाराज़ हो
उसे कर दे माफ,उसकी एक माफी पर

कितना अच्छा हो
धूप और छाँव बैठे एक साथ
और सूरज हो जाए
थोड़ा बेफिक्र

कितना अच्छा हो
रोती हुई स्त्री
कांधे से लगकर हो जाए एकदम चुप

कितना अच्छा हो
बच्चा हंसते हुए पकड़े
रोज़ हमारे गाल

कितना अच्छा हो
कि अच्छा होने की कल्पना में
दो अजनबी पेश आए
एक दुसरे से दोस्त की तरह

चाहे जितना बुरा हो जीवन में
मगर इतना अच्छा भी होना चाहिए

ताकि
आदमी कह सके बेझिझक
प्यार मेरी जरूरत है
और मैं जरूरतमंद नही हूँ।

©डॉ. अजित