बातें बहुत कहना चाहता हूं, कहता भी हूं, पर हमेशा अधूरी रह जाती हैं, सोचता हूं, कहूंगा...शेष फिर...
Saturday, November 17, 2012
गज़ल
Tuesday, October 30, 2012
किताब..
Sunday, October 14, 2012
रात,चांदनी और तारा...
Saturday, October 13, 2012
मुकाम
Friday, September 28, 2012
विदा
Monday, September 24, 2012
तरकीब
Saturday, August 4, 2012
खबर
Thursday, May 10, 2012
जंगल
Sunday, April 29, 2012
सफीना
Monday, March 26, 2012
मुताबिक
तेरे मुताबिक नजर आना जरुरी तो नही
अपनापन मेरा सलीका है मजबूरी तो नही
तुझे खुद अपनी अना का अहसास नही
इंसान है दोस्त तू मृग कस्तूरी तो नही
यूँ हर बात पर तेरी हाँ मे हाँ कहना
रवायत हो सकती है मगर जरुरी तो नही
दम कब के निकल जाते तेरे दम से
किसी के पास खुदा की मंजूरी तो नही
रबहर-ए-मंजिल के और भी है तलबगार
ऐसा भी अकेला तू हीरा कोहिनूरी तो नही
Monday, January 23, 2012
आईना..
मुश्किल वक्त
कितना मुश्किल लगने
लगता है जब
दोस्ती की बीच में
समझदारी उग आयें
रात के अक्सर नींद न आयें
पत्नि बिना वजह समझाए
दुश्मनों से सलाह लेनी पड जाए
मर्ज़ की दवा कम पड जाए
ऐसे बुरे वक्त से गुजरता
अक्सर यह सोचता हूँ
रात के बाद सवेरा है
ये सब कहते-सुनते आयें है
लेकिन रात कितनी बडी हो जाती है
इसके लिए अपने से सूरज़ की
दूरी मापनी होगी
जिसे मापते हुए
मै पसीना-पसीना हो रहा हूँ
इस सर्द रात में...
नया साल भी
कितना जालिम निकला...!