मैंने कविता का नही
कविता ने मेरा चुनाव किया था
कविता ने खुद तय किया था
अपना रुकने का काल
मैं इतना मुग्ध था कविता के
इस निर्णय पर
कि लिखता गया सबके मन की बात
अपने मन की बात
दरअसल, मैंने कुछ भी नही लिखा
सब लिखा हुआ कहीं पहले से
मैं जरिया भर था
शब्दों को आकर देने का
मैंने कोई कविता नही लिखी
कविता ने मेरे जरिए लिखी अपनी बात
मेरे अंदर कभी न उपज सका
एक कवि जितना आत्मविश्वास
नही कर सका मैं कोई नियोजन
ताकि लोक में मुझे समझा जाए कवि
यह कविता का ही था कोई प्रयोजन
ईश्वर जाने!
अब जब कविता नही है मेरे पास
मैं खुद को देखता हूँ अवाक
जब कोई पढ़वाता है
मेरी कविता मुझे
और करता है प्रशंसा
मैं देखता हूँ आसमान की तरफ
यह सोचकर
कविता मुझे यूं देखकर
जरूर मुस्कुराती होगी।
© डॉ. अजित
कविता ने मेरा चुनाव किया था
कविता ने खुद तय किया था
अपना रुकने का काल
मैं इतना मुग्ध था कविता के
इस निर्णय पर
कि लिखता गया सबके मन की बात
अपने मन की बात
दरअसल, मैंने कुछ भी नही लिखा
सब लिखा हुआ कहीं पहले से
मैं जरिया भर था
शब्दों को आकर देने का
मैंने कोई कविता नही लिखी
कविता ने मेरे जरिए लिखी अपनी बात
मेरे अंदर कभी न उपज सका
एक कवि जितना आत्मविश्वास
नही कर सका मैं कोई नियोजन
ताकि लोक में मुझे समझा जाए कवि
यह कविता का ही था कोई प्रयोजन
ईश्वर जाने!
अब जब कविता नही है मेरे पास
मैं खुद को देखता हूँ अवाक
जब कोई पढ़वाता है
मेरी कविता मुझे
और करता है प्रशंसा
मैं देखता हूँ आसमान की तरफ
यह सोचकर
कविता मुझे यूं देखकर
जरूर मुस्कुराती होगी।
© डॉ. अजित