Saturday, August 29, 2020

विदा

 इतने चुपके से जाना

जैसे बातचीत से चली जाती है

एक उन्मुक्त हँसी


जब जाना

बताकर मत जाना

अन्यथा प्रतीक्षा हो जाएगी गरिमाहीन


जब भी जाना

कुछ इस तरह से जाना 

जैसे आसमान से बादल चले जाते हैं चुपचाप

ताकि दिखायी देता रहे उसका असीम नीलापन 


जाना कुछ तरह से

कि लोगों को लगता रहे

तुम कहीं नही गए हो

यही हो आसपास 


जब तुम चले जाओ

तो तुम्हारी बातें भी चली जाए 

तुम्हारे साथ


कुछ ऐसी करना कोशिश


जब भी जाना 

इस तरह जाना कि

तुम्हारा आना 

लगा दे विराम 

तमाम आशंकाओं पर 


और तुम्हारा जाना

हो सके सहजता से विस्मृत।


© डॉ. अजित