मूलत:
कवि
कम
बचे है अब
जो
बचे है
वो
थोड़े मूलत: कवि है
थोड़े
कविता के जानकार
**
निजी
कविताओं के
पाठक
कम बचे है
जो
बचे है
उनकी
निजता खो गई है
निजी
कविताओं के बहाने
**
कविता
लिखी नही जाती
कविता
आती है
और
निकल जाती है कवि के आर-पार
मनुष्य
और कवि में विभाजन रेखा
देखनें
के लिए
कविता
की मदद ली सकती है हमेशा.
**
एक
कवि
कविता
लिखता है
एक
कविता पर बात करता है
और
एक कविता का आन्दोलन करता है
तीनों
को छोड़कर कविता
पाठक
के पास चली जाती है
फिर
हंसती है कवि के संताप पर
कविता
का हंसना
कवि
के रोने में देखा जा सकता है साफ-साफ.
**
कविता
कवि का करती है चुनाव
और
कवि मानता है उसे अपनी कविता
मगर
दोनों
ही वास्तव में एकदूसरे से होते है
गहरे
अजनबी
कवि
यह बात जानता है
कविता
यह बात कभी जानना नही चाहती.
**
एकदिन
धरती से खत्म हो जाएंगी
कविताएँ
तब
कहानी रोया करेगी अपने एकांत में
कवि
देखा करेंगे आसमान
अपनी
कविताओं के पदचिन्ह
और
ईश्वर से माँगा करेंगे
पुनर्जन्म
की भीख.
©
डॉ.अजित