Friday, July 19, 2024

चक्र

 दुनिया का अंत देखने के लिए

समानांतर दुनिया की कल्पना 

नितांत ही जरूरी है

ये अलग बात है कि अंत देखने के बाद 

हमें भोगी हुई दुनिया दिखने लगे समानांतर

दुनिया का अंत देखना उनके लिए निश्चित ही दिलचस्प होगा

जो दुनिया में केवल खोजते रह गए रोमांच।


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दुनिया का अंत 

देखने की चाह में अनेक चीजों का अंत हुआ

मगर विश्वास सबसे शिखर पर था

तमाम अंत के मध्य।


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एक दुनिया का अंत हमारे अंदर हुआ

तो हमे लगा यही थी सबसे अस्त व्यस्त दुनिया

जबकि दुनिया आरम्भ से लेकर अंत तक रही नियोजित और स्थिर

तमाम अस्त व्यस्त चीजें हमारी कामनाओं के चूकने की अभिव्यक्ति भर थी।


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एक बिंदु से चलकर 

कहीं पहुंचना भूगोल की घटना है

एक बिंदु से चलकर 

सही जगह न पहुंचना शायद मनोविज्ञान की

मगर एक बिंदु से चलकर कहीं न पहुंचना उस दर्शन की घटना थी जो हमने कभी नहीं पढ़ा था।


© डॉ. अजित 

कुचक्र

 मुझे कई दोस्तों ने कहा फोन पर

बड़ी लम्बी उम्र है आपकी 

अभी आपका ही जिक्र चल रहा था

या बिल्कुल अभी फोन निकाला था जेब से 

करने ही वाला था आपको कॉल


मैं इस कथन पर हँसता और कहता

ऐसा! 


मेरे परिवार में पुरुष अल्पायु रहे सदा

पिता बमुश्किल पहुंच पाए  पचपन तक

दादा चले गए मात्र अट्ठाईस की उम्र में

दादी को सौंपकर उनके हिस्से का अंधेरा


यदि मैं लम्बा जीया तो पढूंगा यह कविता सस्वर

उन दोस्तो के साथ किसी पहाड़ी गेस्ट हाउस पर 

बनाऊंगा उनके लिए खुद खाना

पिलाऊंगा उन्हें अच्छी चाय या शराब

दूंगा उन्हें दिल से धन्यवाद


क्योंकि मेरा उत्तर जीवन 

उन्हीं के भरोसे हुआ है पार

उस क्रूर कुचक्र से 

जहाँ पुरुष अकेले चल देते हैं 

मृत्यु की यात्रा पर एकदिन 

स्त्री और बच्चों को सौंपकर 

उनके हिस्से की जिम्मेदारी

असमय,अकारण और आकस्मिक।


©डॉ. अजित