दुनिया का अंत देखने के लिए
समानांतर दुनिया की कल्पना
नितांत ही जरूरी है
ये अलग बात है कि अंत देखने के बाद
हमें भोगी हुई दुनिया दिखने लगे समानांतर
दुनिया का अंत देखना उनके लिए निश्चित ही दिलचस्प होगा
जो दुनिया में केवल खोजते रह गए रोमांच।
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दुनिया का अंत
देखने की चाह में अनेक चीजों का अंत हुआ
मगर विश्वास सबसे शिखर पर था
तमाम अंत के मध्य।
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एक दुनिया का अंत हमारे अंदर हुआ
तो हमे लगा यही थी सबसे अस्त व्यस्त दुनिया
जबकि दुनिया आरम्भ से लेकर अंत तक रही नियोजित और स्थिर
तमाम अस्त व्यस्त चीजें हमारी कामनाओं के चूकने की अभिव्यक्ति भर थी।
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एक बिंदु से चलकर
कहीं पहुंचना भूगोल की घटना है
एक बिंदु से चलकर
सही जगह न पहुंचना शायद मनोविज्ञान की
मगर एक बिंदु से चलकर कहीं न पहुंचना उस दर्शन की घटना थी जो हमने कभी नहीं पढ़ा था।
© डॉ. अजित