उसने पूछा नही
और मैंने बताया नही
हवा में झूलती एक महीन लकीर
हम दोनों को नजर आती थी मगर
वो लकीर दो देशों के मध्य खींची
सीमा रेखा नही थी
इसलिए हम टहल सकते थे उसके आर-पार
अपनी सुविधा से
निर्वासन से पहले
जब मैं तलाश रहा था
उस देश का नक्शा
जहाँ मनुष्य को रुकने लिए
अपना परिचय नही देना पड़ता
तब मुझे याद आती थी वो महीन लकीर
उसका मिलान
मैंने किया कई मानचित्रों से
उससे मिलती जुलती कोई लकीर नही थी
इसलिए मुझे हमेशा संदिग्ध लगता था
विश्व नागरिक का विचार
यदि उसने पूछा होता
तो मैं शायद यह बात जरूर बताता
कोई भी लकीर कितनी महीन क्यों ना
हो
वो हमें बांटती जरूर है
थोड़ा हिस्सों में
थोड़ा किस्सों में
दुनिया ऐसी ना दिखने वाली
महीन लकीरों का मानचित्र हैं
जहां हम मान सकते हैं
कि जो हमारे साथ खड़ा है
या हम जिसके साथ खड़े हैं
वो एक ही जगह से सबंधित है.
© डॉ. अजित