Tuesday, December 24, 2013

अनुमान




मेरा प्रेम उत्तर आधुनिक भी नही है
जहाँ मै देह के प्रतिमानों से मुक्त हूँ
मेरा प्रेम शास्त्रीय भी नही है कि
जिसमे विशुद्ध कलात्मक बोध हो
मेरा प्रेम इन दोनो से इतर प्रेम है
यह प्रेम भी है इस पर भी अभी सन्देह है
ना यह आसक्ति या अनुराग जैसा है
इसमे संशय या समपर्ण दोनो महत्वहीन है
यह प्रेम से हटकर कुछ है
और इस कुछ को परिभाषित करने के लिए
भाषाविज्ञानियों को नया शब्द गढना होगा
खोजनी होगी सम्बंधो की नई अवधारणा
दरअसल,
प्रेम के लौकिक या अलौकिक दोनों रुप से
अलग है मेरे भाव,मेरे चित्त की दशा और मेरा चाह
यह बात किसी को तो क्या
तुम्हे भी नही समझा सकता ठीक ठीक 
आसक्ति,अनुराग,देह और स्नेह की प्रचलित सीमाओं
से बहुत आगे निकल आया हूँ मैं
वह भी तुम्हे बिना बतायें
मेरी पडताल करते जो लोग आयेंगे
उन्हे तुमसे मिलकर भी कोई अनुमान न मिलेगा
फिलहाल तो
मुझे खुद अनुमान नही है
कि मेरा तुमसे सम्बंध क्या है?

डॉ.अजीत

Monday, December 16, 2013

यकीन

मेरे अपराधबोध में तुम्हारी सहमतियां भी शामिल है
मेरे संकोच में तुम्हारे आग्रह भी शामिल है
मेरे उत्साह मे तुम्हारा मौन भी शामिल है
मेरे अवसाद में तुम्हारी उपेक्षा भी शामिल है
मेरे अपेक्षाओं के जंगल में तुम्हारी उपस्थिति भी शामिल है
मेरे खो जाने मे तुम्हारी फिक्र भी शामिल है
और 
मेरे प्रपंचों में तुमसे मिलने का षडयंत्र सबसे बडा है
मेरे भय में तुम्हारे बदल जाने का भय सबसे बडा है
मेरे विकल्पों में तुम्हारा कोई विकल्प ही नही है
मेरे संकल्पों में तुम्हारा संकल्प ही नही है
फिर भी
हम साथ-साथ है
बे-बात है
दिन -रात है
न कुछ व्यक्त है
न कुछ अव्यक्त है
फिर क्या संयुक्त है
शायद हमारा होना
जो फिलहाल बेवजह नही है
इसकी वजह की पडताल कभी मत करना
क्योंकि
रात के बाद
दिन का आना तय है
और दिन में बाद रात आयेगी
यह तय नही हुआ है अभी

दिन के मेले में हमारा खो जाना
सूरज के जितना शाश्वत है
और मेरी गर्भकाल से लडाई
शाश्वत के खिलाफ ही चल रही है
मेरी लडाई मे तुम हार जाओं
यह हार मेरी हार से बडी हार मे शामिल होगी  
तुम्हें यह बडप्पन मै कभी नही मिलने दूंगा
ये वादा है मेरा
या जिद भी समझ सकती हो
यकीन करो न करो
तुम्हारी मर्जी ..।