'कृपया'
एक निवेदन है
और आग्रह भी
'कृपा' जिसमें
किसी एक का परिणाम बन जाती है।
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अपनी छाया के अंदर
कूदकर देखता हूँ
तो पाता हूँ
वहां वह कठोरता मौजूद है
जो असल जीवन से
अनुपस्थित है।
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सपने यदि ऐच्छिक होते तो
कल्पना निस्तेज चीज बन जाती।
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मैंने खुद को प्रभावित
करने की चेष्टा में
खुद का सबसे अधिक नुकसान किया।
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हमें देखने के लिए
आँख की न्यूनतम जरूरत थी
मगर
हम आँख से आगे कभी न देख पाए।
©डॉ. अजित