उसका वजूद किस्से कहानियों मे रह गया
दावा समन्दर का था पर दरिया मे बह गया
फिकरे चंद लोगो ने कसे थे उसकी मजबूरियों पर
मगर खफा हो कर वो सबको बेवफा कह गया
इतने करीब से उसको जानता हूं मै
वो अब नही आएगा भले ही आने को कह गया
इसे रात की बेबसी कहूं तो तोहमत लगेगी
चांद निकलते ही आधा रह गया
तवज्जो उसी को मिलती है इस दूनिया में
लबो पे मुस्कान सजाकर जो दिल के जख्मों को सह गया
दोस्त हौसला बांट न सके अपने किरदारो का
सबके हाथों मे बस दिखाने को आईना रह गया...।
डा.अजीत