काश!
सपनें गिरवी रख कर
नींद उधार मिल जाती
पुरानी फिल्मों की तरह
याददाश्त चली जाती
और कोई कोशिस भी न करता
वापिस लाने की
दोस्त शिष्टाचार की क्लास छोड
अपनेपन को बचाने की सोचतें
दुश्मन डर कर योजनाएं बनाने की बजाए
खुल कर ललकारता युद्द के लिए
बोलता..... आक्रमण.... महाभारत की तरह
पत्नि बेवजह फिक्र करना छोड देती
और दोस्तों पर तंज कसना भी
माँ कभी-कभी बीमारी न बताकर
जो मेरी बडाई वो सुनती है
उसका कोई किस्सा सुनाती
पिता की अपेक्षाएं घट जाती
स्वीकार कर लेता मेरा नालायक होना
प्रेमिका मुझे अपना मोबाईल नम्बर
बदलने का एसएमएस कर देती
पुराना दोस्त मिलने पर
बच्चों की खैरियत न पूछता
बच्चा मेरी हैसियत से ज्यादा
कोई चीज़ लाने की जिद न करता
भाई मुझे ले जाता एकांत में
और समझाता अपनी मजबूरी
जो नाराज़ है बरसो से वो
बिना किसी सफाई के मान जाता
जिनके चेहरे नापसंद हैं बेहद
उनसे रोज़ाना मिलना न होता
शुभकामनाओं के औपचारिक
फोन/एसएमएस न आतें नये साल/जन्मदिन पर
रिश्तेंदार कद,पद और कर्जे की
तफ्तीश न करते पाये जातें
तब शायद इस बेवजह मशरुफ
रहने वाली दूनियादारी में
यही है दुनिया का दस्तूर..
ReplyDeleteआप सादर आमंत्रित हैं,
http://arvindshuklakanpur.blogspot.com/
http://eksafarjindgika.blogspot.com
kshama der se aane ke liye .
ReplyDeleteaur ha........
kash aapko doosare ka blog padne se aitraaz naa hota.......
janha aapne shikayat chodee hai agar pad lete to pata chal jata ki mai aswasth rahee ...khair kai selfcentered logo se paalaa padta rahta hai.....
kafi umda vichar.
ReplyDeletereal
thnx
इस बेवजह मशरुफ रहने वाली दूनियादारी में कुछ दिन और जी सकता था मैं....बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeleteबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..