दोस्तों से शेयर
करने के लिए
उपलब्धि या दुख
का होना जरुरी है
लेकिन क्या
दोस्ती के व्याकरण
मे ऐसा भी कोई
नियम है कि
जब मन के उस
विराट शून्य को
जहाँ न कोई
उपलब्धि हो
न कोई दुख
बस एक निर्वात हो
और उसे बिना
कहे शेयर किया जा सके
जहाँ न किन्तु हो न परंतु
बस अबोला संवाद हो
सुख-दुख हार-जीत
अपेक्षा से परे एक ऐसा भाव
जिसमे ठहराव है जन्मजात
बैचेनी है
और शून्य मे विलीन होने
की एक मूकबधिर सी अभिलाषा
अफसोस!
ऐसे दोस्त संविदा पर नही मिलते
होते है किसी-किसी के पास
फिर वहाँ ऐसा शून्य
आधार बनता है किसी
नए आत्मीय संवाद का....!
डॉ.अजीत