जख्मों को इस तरह सीना चाहता हूँ
बस अपनी शर्तों पर जीना चाहता हूँ
आप जिद कर ही बैठे है सुनने की
तो फिर पहले थोडी पीना चाहता हूँ
वो वक्त भी अजीब था जब शौक था
आजकल लोगो की फरमाईश पर गाता हूँ
दर्द जिसके साथ बांटे वो बेकद्र निकला
अब अक्सर हँसकर जख्म छुपाता हूँ
अपनी फकीरी का ये अन्दाज़ भी अजीब है
जो दर बेआस है उस पर अलख जगाता हूँ
मुझसा कोई न मिला होगा अब से पहले
चलिए ये फैसला आप पर ही छोड जाता हूँ
डॉ.अजीत