Thursday, December 8, 2011

कयास

अपने वहम औ कयास रहने दो

मुझे अपने आस-पास रहने दो


थक गया है अब किरदार मेरा

कुछ दिन इसे बेलिबास रहने दो


दोस्त फनकार बन गए है सब

नाचीज़ को बस खाकसार रहने दो


हंसने मे जो शख्स माहिर था

उसे कुछ दिन उदास रहने दो


नज़रो से जो गिर गया हो बेवजह

उसे अब बस मयख्वार रहने दो


डॉ.अजीत

Wednesday, December 7, 2011

गज़ल

यूँ ही वहम औ कयास लगाते रहिए

जख्मों से आदतन पट्टी हटाते रहिए


फिक्रमंद होना तहजीब की बात है

हक जताने पर ऐतराज़ जताते रहिए


इंसान को खुदा कहने वाले बहुत मिले

गुजारिश है आईना मुझे दिखाते रहिए


बेसबब दुनिया से जब जी भर जाए

हम से दिल अपना बहलाते रहिए


मुमकिन है भीड मे पहचान न पाउँ

हम कब क्यों कैसे मिले बताते रहिए


मेरा अक्स मुकम्मल नही हैं कतरा-कतरा

अधूरेपन मे दिलचस्पी हो तो आते रहिए


बोझिल आँखों पर तब्सरा क्यों करुँ

आप फकत बस यूँ ही मुस्कुराते रहिए


डॉ.अजीत