यूँ ही वहम औ’ कयास लगाते रहिए
जख्मों से आदतन पट्टी हटाते रहिए
फिक्रमंद होना तहजीब की बात है
हक जताने पर ऐतराज़ जताते रहिए
इंसान को खुदा कहने वाले बहुत मिले
गुजारिश है आईना मुझे दिखाते रहिए
बेसबब दुनिया से जब जी भर जाए
हम से दिल अपना बहलाते रहिए
मुमकिन है भीड मे पहचान न पाउँ
हम कब क्यों कैसे मिले बताते रहिए
मेरा अक्स मुकम्मल नही हैं कतरा-कतरा
अधूरेपन मे दिलचस्पी हो तो आते रहिए
बोझिल आँखों पर तब्सरा क्यों करुँ
आप फकत बस यूँ ही मुस्कुराते रहिए
डॉ.अजीत
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ReplyDeleteउम्दा गज़ल है डॉ साहब बधाई...
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