लम्हों में खुद को
कैद कर नही सकता
महफिल उनकी है हद से
गुजर नही सकता
तकसीम जब दिल के
अफसाने हो जाए
जख्म हल्का भी हो तो
भर नही सकता
खुद की जुस्तजु में
सफर पर निकला हूँ
एक तेरे लिए ये सफीना
डूबो नही सकता
शिकवे शिकायत छोड यूँ
भी मिलना कभी
हमारा अहसास इतनी जल्दी
खो नही सकता
बारहा कभी यूँ ही तन्हाई
में रो लेंगे हम भी
आपकी तरह सबके सामने मै
रो नही सकता
डॉ.अजीत
wah!!!
ReplyDeleteyatharthwaad..!!!
वाह! बेहद खुबसूरत ग़ज़ल.....
ReplyDeletesafar!!
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