Saturday, November 17, 2012

गज़ल


करीब आकर भी दूर चले जाते है
कुछ लोग नजरों से उतर जाते है

हर साल कैलेंडर की तरह
दोस्त क्यूँ बदल जाते है

वो बुत बना देखता है तमाशा
फिर क्यों उसके दर पे जाते है

कुछ पैमाने हमसे इसलिए खफा है
छोटे जाम हम अक्सर छोड जाते है

मगरुर होती है जब भी शख्सियत
फकीर अपनी फूंक से तोड जाते है
डॉ.अजीत 

4 comments:

  1. aaj aapke rachna ka avlokan rashmi di ke najar me dekh kar achchha laga.. badhai:)

    ReplyDelete
  2. वाह बहुत खूब


    सिर्फ इंटरनेट की दोस्ती कैलेंडर की तरह बदलती है ...यहाँ के लोग बहुत जल्दी एक दोस्त से बोर हो जाते है

    ReplyDelete