तुम
आशीर्वाद मांगने ठीक
उस
वक्त मेरे पास आये
जब
मै लगभग निस्तेज़ था
तुम
प्रेम मांगने ठीक
उस
वक्त मेरे पास आए
जब
मै अन्दर से रिक्त था
तुम
मुझे मांगने ठीक
उस
वक्त मेरे पास आए
जब
मै बिक चुका था
तुम्हारे
समीकरण
कभी
ठीक नही रहे
मांगने
के मामले में
बावजूद
इसके
मै
आज तुम्हे देता हूँ
एक
शब्द
‘तथास्तु’
यह
महज़ एक शब्द नही
व्याकरण
है जिन्दगी का
आदतन
इसका
संधि विच्छेद मत करना
मेरी
तरह
यह
शर्त सौप रहा हूँ तुम्हें
वरदान
की शक्ल में।
डॉ.अजीत
'तथास्तु' का अर्थ ही है भीतर एक शक्ति है
ReplyDeleteजिसे ईश्वर मानो,या कर्ण
प्रभावी भाव सम्प्रेषण ....
ReplyDeleteaap ka likha padhna gaurav k skhan hai ,risto ka aankalan kya gazab tarike se ,waah hi nikle muhh se aur dil se aahh !! ratanjeet
ReplyDeleteहमेशा की तरह सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteरिक्तता के भाव को भावनात्मक लेखन से संतृप्त कर दिया...
ReplyDeleteसाधुवाद
अच्छी कविता लगी अजीत जी. सधा हुआ स्वर है आपका
ReplyDelete